परिवीक्षा अवधि में कर्मचारी की असंतोषजनक सेवा पर बिना जांच के भी समाप्त की जा सकती है सेवा – हाईकोर्ट
हाथरस के याची ने परिवीक्षाधीन के दौरान सेवा को रद्द करने के खिलाफ दाखिल की थी याचिका
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि परिवीक्षा अवधि के दौरान कर्मचारी की असंतोषजनक सेवा पर जांच के बिना भी उसकी नियुक्ति को रद्द की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि रोजगार के नियमों के तहत या संविदात्मक अधिकार के प्रयोग में किसी प्रोबेशनर की सेवाओं की समाप्ति न तो बर्खास्तगी है और न ही निष्कासन। हालांकि अगर आदेश कर्मचारी के चरित्र या ईमानदारी के विरुद्ध है तो यह दंड के रूप में एक आदेश होगा, भले ही कर्मचारी केवल प्रोबेशनर या अस्थायी हो। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने संजय कुमार सेंगर और केएल जैन इंटर कॉलेज की याचिकाओं पर दिया।
याची संजय का 2006 में केएल जैन इंटर कॉलेज महामाया नगर में सहायक अध्यापक व्यायाम के पद पर चयन हुआ। वह प्रोबेशन पर थे। उनकी परिवीक्षा (प्रोबेशन) अवधि एक वर्ष के लिए बढ़ाकर 2008 तक कर दी गई। 2007 में जब याची को वेतन नहीं दिया गया तो उसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जिसे खारिज कर दिया गया।
असंतोषजनक सेवा देने वाला कर्मचारी स्थायी नियुक्ति का हकदार नहीं : हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, असंतोषजनक सेवा देने वाला परिवीक्षाधीन (प्रोबेशन) कर्मचारी स्थायी नियुक्ति का हकदार नहीं है। कोर्ट ने यह टिप्पणी कर प्रोबेशन अवधि के दौरान सेवा से हटाए जाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने संजय कुमार सेंगरी की याचिका पर दिया। हाथरस के याची की केएल जैन इंटर कॉलेज में 2006 में सहायक अध्यापक व्यायाम के पद पर नियुक्ति हुई थी और वह परिवीक्षा अवधि पर था। उसकी परिवीक्षा अवधि एक वर्ष के लिए बढ़ाकर 2008 तक कर दी गई।
2007 में जब वेतन नहीं दिया गया तो उसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद प्रतिवादी संस्थान के प्रबंधक ने याची के खिलाफ कई आरोप लगा आठ अक्तूबर 2007 को एक आरोप पत्र प्रस्तुत किया और जांच समिति गठित कर दी गई।
समिति ने 20 नवंबर 2007 को जांच रिपोर्ट देते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया। आरोप सही पाए जाने और जवाब से संतुष्ट न होने पर याची की सेवा को प्रोबेशन अवधि की समाप्ति से समाप्त कर दी गई। साथ ही याची की जगह पर विज्ञापन निकाला गया और वलीउज्जमां खान नामक व्यक्ति की नियुक्ति की गई। इसे याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
कोर्ट ने कहा, परिवीक्षाधीन व्यक्ति की सेवाओं का विस्तार संतोषजनक सेवा के आधार पर होता है। यदि उसकी सेवाएं असंतोषजनक पाई जाती हैं तो जांच किए बिना भी उसकी नियुक्ति रद्द की जा सकती है।
कोर्ट ने माना कि मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का विधिवत अनुपालन किया गया। वहीं, याचिकाकर्ता को अपना बचाव प्रस्तुत करने का पर्याप्त अवसर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में परिवीक्षा अवधि न बढ़ाने और सेवा समाप्त करने के आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। वहीं, न्यायालय ने वलीउज्जमां खान को सहायक अध्यापक व्यायाम के रूप में नियुक्त करने पर कोई रोक नहीं लगाई।