मृत कर्मचारी के मेडिकल बिलों का भुगतान परिसीमा के आधार पर नहीं रोक सकते, पत्नी/उत्तराधिकारियों को देरी के आधार पर परेशान नहीं किया जाना चाहिए : हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, मृतक कर्मचारी के उत्तराधिकारियों को परिसीमा के आधार पर मेडिकल बिलों के भुगतान को नहीं रोका जाना चाहिए। जो लोग आकस्मिक लाभों के लिए पात्र हैं, उनके आवेदन को देरी के आधार पर अस्वीकार नहीं करना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने मैमुना बेगम की याचिका पर दिया।
प्रयागराज की याची मैमुना बेगम के पति लोक निर्माण विभाग रायबरेली में कार्यरत थे। इस दौरान बीमार हुए और इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। पति के चिकित्सा बिलों के भुगतान के लिए याची ने विभाग में आवेदन किया, जिसे देरी के आधार पर खारिज कर दिया गया। याची ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि पति की मौत के बाद याची पत्नी सदमे में चली गई। ठीक होने के बाद उसने विभाग में मेडिकल बिलों के भुगतान के लिए आवेदन किया। ऐसे में उसके आवेदन को देरी के आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा, यदि किसी कर्मचारी की इलाज के दौरान मृत्यु हो जाती है तो उसकी पत्नी/उत्तराधिकारियों को देरी के आधार पर परेशान नहीं किया जाना चाहिए। कर्मचारी के जीवित रहने पर देरी के नियम को सख्ती से लागू किया जा सकता है। लेकिन, कर्मचारी की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारियों के मामले में ऐसे नियमों को लागू नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि दावों के लिए 90 दिन की अवधि निर्धारित करने वाला प्रावधान निर्देशिका प्रकृति का है। ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो उक्त अवधि के बाद किए गए सभी दावों को अनिवार्य रूप से रोकता हो। कोर्ट ने याची को मेडिकल बिल फिर से प्रस्तुत करने का निर्देश दिया और संबंधित प्राधिकारी को कानून के अनुसार बिलों का निपटान करने का निर्देश दिया।