कार्यस्थल पर वरिष्ठ की डांट अपराध नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आपराधिक आरोप लगाने की अनुमति देने से खराब होगा अनुशासन का माहौल
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यस्थल पर वरिष्ठ की डांट जानबूझकर अपमानित करना नहीं है, जिसके लि ए आपराधिक कार्यवाही की जरूरत पड़े। शीर्ष कोर्ट ने कहा, ऐसे मामलों में व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाने की अनुमति के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं, जिससे कार्यस्थल पर अनिवार्य संपूर्ण अनुशासन का माहौल खराब हो सकता है।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504 के अर्थ में केवल दुर्व्यवहार, असभ्यता, अशिष्टता या बदतमीजी जानबूझकर अपमान नहीं है। आईपीसी की धारा 504 शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करने से जुड़ी है। शीर्ष अदालत का यह फैसला राष्ट्रीय बौद्धिक दिव्यांगों के सशक्तीकरण संस्थान के कार्यवाहक निदेशक के खिलाफ 2022 के आपराधिक मामले को रद्द करते हुए आया है, जिस पर सहायक प्रोफेसर को अपमानित करने का आरोप था।
उच्च अधिकारियों से शिकायत पर लगाई थी फटकार
शिकायतकर्ता का आरोप था कि निदेशक के खिलाफ उच्च अधिकारियों को शिकायत देने पर उन्होंने अन्य कर्मचारियों के सामने डांटा और फटकार लगाई। यह भी आरोप लगाया कि निदेशक संस्थान में पर्याप्त पीपीई किट देने और उसके रखरखाव में विफल रहे, जिससे कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा था। पीठ ने कहा, आरोपपत्र व उसमें मौजूद दस्तावेज को देखने से आरोप अनुमान पर आधारित लगते हैं।
कर्तव्य निर्वहन की चेतावनी देना जानबूझकर अपमान नहीं:
पीठ ने कहा, हमारी राय में वरिष्ठ की चेतावनी यदि कार्यस्थल के अनुशासन और कर्तव्य निर्वहन से जुड़ी हो, तो आईपीसी की धारा 504 के तहत भड़काने के इरादे से जानबूझकर अपमान नहीं माना जा सकता है। जो व्यक्ति मामलों को संभाल रहा है, उसकी अपेक्षा जायज ही है कि उसके कनिष्ठों को पेशेवर कर्तव्य पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ निभाना चाहिए।