सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते बुजुर्गों को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले से अब उन बच्चों को सतर्क रहने की जरूरत है, जो बुजुर्ग माता-पिता से संपत्ति अपने नाम कराने या फिर उनसे गिफ्ट पाने के बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं। यह ऐसा फैसला है, जो संपत्ति के लिए बुजुर्ग माता-पिता की सेवा को अनिवार्य बनाता है।
गिफ्ट डीड पर सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर: माता-पिता की सेवा ही अब दिलाएगी संपत्ति
देश में ऐसे बहुतेरे मामले सामने आते हैं, जब संतानें माता-पिता को बुढ़ापे में उनके हाल पर छोड़ देती हैं। यह लगभग हर घर की कहानी है। खासकर बढ़ती न्यूक्लियर फैमिली कल्चर में बुजुर्गों को बेइज्जत तो किया ही जाता है साथ ही उन्हें वृद्धाश्रम में भी भेज दिया जाता है। ऐसे में बुजुर्ग बेसहारा हो जाते हैं और दर-दर की ठोकरें खाते हैं। अब ऐसा नहीं चलेगा।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया ऐतिहासिक फैसले के तहत माता-पिता से संपत्ति या गिफ्ट लेने के बाद उन्हें ठुकराने वालों को बड़ी कीमत चुकानी होगी। ऐसे बच्चों को प्रॉपर्टी या गिफ्ट या फिर दोनों लौटाने होंगे। बुजुर्ग माता-पिता का भरण-पोषण हर हाल में करना होगा। उन्हें उनके हाल पर छोड़ना महंगा पड़ सकता है।
■ बुढ़ापे के लिए उम्मीद की किरण
सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले से बुजुर्गों को फायदा होने वाला है। फैसले से उम्मीद बंधी है कि बच्चे बुजुर्ग माता-पिता का ख्याल रखेंगे और उनसे अच्छा व्यवहार करेंगे। इससे वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में सुधार आएगा। आमतौर पर देखा जाता है कि कई अभिभावकों को उनके बच्चे प्रॉपर्टी और गिफ्ट लेने के बाद नजरअंदाज कर देते हैं। कोर्ट ने कहा, बच्चों को अब माता-पिता की प्रॉपर्टी और बाकी
समझिए, गिफ्ट डीड का मतलब
गिफ्ट डीड एक कानूनी दस्तावेज है, जिसका उपयोग किसी संपत्ति या संपत्ति का मालिकाना हक एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित करने के लिए किया जाता है। यह पैसे के आदान- प्रदान के बिना मालिकाना हक का हस्तांतरण है। यानी इसमें कोई भी रजिस्ट्री शुल्क या ट्रांसफर शुल्क या किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लगता है।
गिफ्ट दिए जाने के बाद एक शर्त उसमें शामिल होगी। शर्त के मुताबिक, बच्चों को माता-पिता का ख्याल रखना होगा। उनकी जरूरतों को पूरा करना होगा। अगर बच्चों ने इन शर्तों को नहीं माना और माता-पिता को उनके हाल पर अकेला छोड़ दिया तो उनसे सारी प्रॉपर्टी और बाकी गिफ्ट वापस ले लिए जाएंगे। प्रॉपर्टी का ट्रांसफर शून्य घोषित कर दिया जाएगा।
कोर्ट ने इस वजह से सुनाया फैसला
मध्यप्रदेश की उर्मिला दीक्षित ने बेटे को इस शर्त पर संपत्ति गिफ्ट में दी थी कि वह उनकी सेवा करेगा। बेटे की उपेक्षा व दुर्व्यवहार के कारण मां ने ट्रिब्यूनल में गिफ्ट डीड रद्द करने का केस किया और जीत गई, लेकिन हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस आदेश को रद्द कर दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की खंडपीठ के निर्णय को पलट दिया।
जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने कहा, यदि कोई वरिष्ठ नागरिक किसी व्यक्ति को इस शर्त पर संपत्ति हस्तांतरित करता है कि वह उनकी सेवा करते हुए बुनियादी सुविधाएं देगा, लेकिन संपत्ति लेने वाला इस शर्त का उल्लंघन करता है तो संपत्ति का हस्तांतरण धोखाधड़ी माना जाएगा। ऐसे मामलों में ट्रिब्युनल बुजुर्ग माता-पिता को संपत्ति वापस हस्तांतरित करने और बेदखली का आदेश दे सकता है। वरिष्ठ नागरिकों द्वारा उपहार में दी गई संपत्ति को वापस करने की ट्रिब्युनल की शक्ति के बिना, बुजुर्गों को लाभ पहुंचाने वाले कानून के उद्देश्य ही विफल हो जाएंगे।
■ माना जाएगा धोखाधड़ी का मामला
शीर्ष अदालत के मुताबिक, बच्चों द्वारा बुजुगों की सेवा नहीं करने पर संपत्ति का ट्रांसफर शून्य घोषित तो होगा ही, साथ ही ऐसे मामले में संपत्ति ट्रांसफर धोखाधड़ी या जबरदस्ती के तहत किया गया माना जाएगा। बच्चे माता-पिता की देखभाल करने में विफल रहते हैं तो माता-पिता ने उन्हें जो प्रॉपर्टी और गिफ्ट दिए हैं वो वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत रद्द किया जा सकता कुछ मामले ऐसे भी सामने हैं, जहां धोखाधड़ी जस्वि संपत्ति हाथिया ली जाती है आपका के ट्रांसफर बताया जाता है। इसलिए इस फैसले से धोखाधड़ी रुकेगी।
■ कभी भी 100 फीसदी संपत्ति ट्रांसफर न करें
सुरक्षित बुढ़ापे के लिए कभी भी अपनी संपत्ति का 100 फीसदी हिस्सा बच्चों को ट्रांसफर न करें। चाहे बच्चा कामयाब हो या असफल, दोनों स्थितियों में बचना जरूरी है। उदाहरण के तौर पर, रेमंड के मालिक व प्रसिद्ध उद्योगपति विजयपत सिंघानिया ने 2015 में रेमंड समूह में पूरी 37.17 फीसदी हिस्सेदारी छोटे बेटे गौतम सिंघानिया को दे दी। इसके बाद गौतम ने अपने पिता को बेदखल कर दिया। विजयपत अब किराये पर रह रहे हैं। यह बताता है कि सुरक्षित बुढ़ापे के लिए कभी भी अपनी संपत्ति को पूरी तरह से किसी को भी ट्रांसफर न करें।
Gift Deed Supreme Court: उपहार में दी गई संपत्ति को रद कर सकते हैं माता-पिता, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता द्वारा बच्चों को उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड को लेकर अहम फैसला सुनाया है जिसके अनुसार माता-पिता की देखभाल न करने पर वे बच्चों को उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद करा सकते हैं और उन्हें संपत्ति से बेदखल करा सकते हैं। कोर्ट ने एक मामले में मां की याचिका पर ये फैसला सुनाया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने एक मां की याचिका पर बेटे के नाम की गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद की, मां को संपत्ति पर कब्जा देने का दिया आदेश।
नई दिल्ली। बुर्जुग माता-पिता की देखभाल न करने पर और उनकी उपेक्षा करने पर माता-पिता बच्चों को उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद करा सकते हैं और उन्हें संपत्ति से बेदखल करा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में मां की याचिका पर बेटे को उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने गिफ्ट डीड रद करते हुए 28 फरवरी तक मां को संपत्ति पर कब्जा देने आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 एक लाभकारी कानून है और इस कानून में स्थापित ट्रिब्यूनल वरिष्ठ नागरिकों के संरक्षण के लिए जरूरी होने पर बेदखली का आदेश दे सकती हैं।
मां ने लगाई थी कोर्ट में गुहार
न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और संजय करोल की पीठ ने गत दो जनवरी को दिये फैसले में वरिष्ठ नागरिक कानून की धारा 23 की व्याख्या करते हुए कहा कि इस धारा के तहत वरिष्ठ नागरिक को उपलब्ध राहत का कानून के उद्देश्य और कारण से संबंध है। कहा कि कुछ मामलों में हमारे देश के बुर्जुगों की देखभाल नहीं होती। ऐसे में ये चीज सीधे तौर पर कानून के उद्देश्य से जुड़ी हुई है।
पीठ ने कहा कि अगर वरिष्ठ नागरिक देखभाल करने की शर्त पर संपत्ति हस्तांतरित करते हैं तो यह कानून उन्हें अधिकारों का संरक्षण करने की शक्ति देता है। मध्य प्रदेश के इस मामले में मां ने याचिका दाखिल कर बेटे पर देखभाल न करने और उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उसे उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद करने की मांग की थी।
हाईकोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
मां ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की खंडपीठ के 31 अक्टूबर 2022 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। खंडपीठ ने अपने आदेश में हाई कोर्ट की एकलपीठ का, छतरपुर के कलक्टर का और सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट व चेयरमैन का आदेश रद कर दिया था, जिसमें सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत आदेश दिया गया था और माता-पिता की देखभाल न करने पर बेटे के हक में की गई गिफ्ट डीड रद कर दी गई थी।
मां का कहना था कि उसने देखभाल करने की शर्त पर बेटे को संपत्ति उपहार में दी थी, लेकिन बेटे ने उनकी देखभाल नहीं की बल्कि उन पर हमला किया, इसलिए गिफ्ट डीड रद कर उन्हें संपत्ति वापस कराई जाए। उनका कहना था कि गिफ्ट डीड के साथ एक वचनपत्र भी बेटे से लिया गया था कि वह देखभाल करेगा। छतरपुर के सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट ने मां की अर्जी स्वीकार करते हुए गिफ्ट डीड शून्य घोषित कर दी थी।
खंडपीठ ने बेटे के हक में सुनाया था फैसला
इसके बाद बेटे की अपीलें उच्च अथारिटी और हाई कोर्ट की एकलपीठ से खारिज हो गईं, लेकिन हाई कोर्ट की खंडपीठ ने निचली अथारिटी और एकलपीठ का फैसला पलटते हुए बेटे के हक में फैसला दिया और कहा कि गिफ्ट डीड में देखभाल करने की कोई शर्त नहीं थी। खंडपीठ ने वचनपत्र को नहीं माना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कई पूर्व फैसलों में वरिष्ठ नागरिक कानून के उद्देश्यों और प्रविधानों की व्याख्या का उल्लेख करते हुए हाई कोर्ट की खंडपीठ के आदेश को गलत ठहराते हुए खारिज कर दिया।