हाईकोर्ट में पदोन्नति के बाद भी हल नहीं होतीं जजों की कठिनाइयां
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जिला न्यायाधीशों को दी जा रही कम पेंशन के मुद्दों पर केंद्र सरकार से विचार करने को कहा है। शीर्ष अदालत ने इस बात पर चिंता जताई कि भारत में जिला न्यायाधीशों की पेंशन बहुत कम है। साथ ही यह भी नोट किया कि यदि जिला जजों को बाद में हाईकोर्ट में पदोन्नत भी कर दिया जाता है तो भी ऐसी कठिनाइयां हल नहीं होती हैं।
सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय पीठ ने अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की ओर से 2015 में दायर एक याचिका पर विचार करते हुए इस पहलू पर ध्यान दिया। सीजेआई ने कहा कि कार्यकाल के अंत में, लगभग 55-60 वर्ष की आयु में ही हाईकोर्ट के जज बन सकते हैं। वे अक्सर अपना पूरा जीवन न्यायपालिका में बिताते हैं, लेकिन उन्हें बताया जाता है कि जिला जज के रूप में उनके कार्य के वर्षों को हाईकोर्ट के जजों के लिए लागू दरों पर पेंशन के भुगतान के लिए नहीं गिना जाएगा।
शीर्ष अदालत ने चिंता व्यक्त की कि ये दरें मुश्किल से ही गुजारा करने के लिए पर्याप्त हैं। पीठ ने कैंसर से ग्रसित एक जिला न्यायाधीश के मामले का जिक्र भी किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिला जजों की पेंशन सिर्फ 15 हजार रुपये प्रति महीना है। कुछ मामलों में जिला जजों की पेंशन जिला न्यायाधीश अपने मामला 8,000 रुपये प्रति महीना है।
सीजेआई ने कहा कि ऐसे जजों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद किसी अन्य तरीके से काम करना भी संभव नहीं है। केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने आश्वासन दिया कि सरकार इस मुद्दे की जांच करेगी। अगली सुनवाई 27 अगस्त को होगी।