केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 11 लाख जवानों-अफसरों को पुरानी पेंशन देने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक के साथ मामले में सुनवाई रहेगी जारी
एडवोकेट अंकुर छिब्बर के एक तय तिथि देने के आग्रह को पीठ ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मामला इतना अर्जेंट नहीं है। इसकी सुनवाई में समय लगेगा। मामले को फिर सूचीबद्ध करने की बात करते हुए कोर्ट ने साफ किया कि इसमें 15 सितंबर, 2023 को लगी अंतरिम रोक जारी रहेगी, हालांकि संबंधित पक्ष जल्द सुनवाई के लिए आवेदन दे सकते हैं।
मिली एक नई तारीख
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को पुनः सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया, जिसका अर्थ है कि मामले की आगे की सुनवाई के लिए एक नई तिथि निर्धारित की जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई पक्ष इस मामले की शीघ्र सुनवाई चाहता है, तो वह इसके लिए आवेदन कर सकता है।
NPS खत्म होगा, OPS होगी बहाल
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला CAPF कर्मियों के भविष्य और उनकी पेंशन योजनाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा। यदि सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखता है, तो CAPF कर्मियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलेगा, जो उनके रिटायरमेंट के बाद एक स्थिर पेंशन की गारंटी देता है। वहीं, यदि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के पक्ष में फैसला करता है, तो CAPF कर्मियों को नई पेंशन योजना के तहत पेंशन मिलेगी जो की बाजार की स्थितियों पर निर्भर होगी।
मामले का महत्त्व
यह मामला न केवल CAPF कर्मियों के लिए, बल्कि पूरे देश के कर्मचारियो के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे यह तय होगा कि आनेवाले समय मे कर्मचारियो को पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलेगा या नही।
CAPF: पुरानी पेंशन पर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 11 लाख जवानों-अफसरों को सुप्रीम कोर्ट से तत्काल नहीं मिली राहत
पवन कुमार मामले में यह माना गया था कि केंद्रीय अर्धसैनिक बल, 'संघ के सशस्त्र बल' हैं। ऐसे में पुरानी पेंशन योजना उन पर भी लागू होती है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हुई संक्षिप्त सुनवाई में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी (संघ के लिए) ने बताया, याचिकाकर्ता देश की रक्षा करने वाले बलों के साथ समानता की मांग कर रहे थे।
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के उन 11 लाख जवानों/अधिकारियों के लिए झटका है, जो सुप्रीम कोर्ट से 'पुरानी पेंशन' मिलने की आस लगाए बैठे थे। सोमवार को सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने उस निर्देश पर अंतरिम रोक की पुष्टि की है, जिसमें पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस), सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 के अनुसार, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों/केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कर्मियों पर भी लागू होने की बात कही गई थी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए भारत संघ को अनुमति देते हुए यह आदेश पारित किया है। इसके तहत प्रतिवादियों/सीएपीएफ कर्मियों की याचिकाओं का निपटान उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार किया गया था। सीएपीएफ में ओपीएस लागू कराने के लिए ये याचिकाएं पवन कुमार एवं अन्य के द्वारा दायर की गई थी।
बता दें कि पवन कुमार मामले में यह माना गया था कि केंद्रीय अर्धसैनिक बल, 'संघ के सशस्त्र बल' हैं। ऐसे में पुरानी पेंशन योजना उन पर भी लागू होती है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हुई संक्षिप्त सुनवाई में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी (संघ के लिए) ने बताया, याचिकाकर्ता देश की रक्षा करने वाले बलों के साथ समानता की मांग कर रहे थे। उच्च न्यायालय ने भी माना है कि ओपीएस का लाभ, पवन कुमार मामले में, यह माना गया कि केंद्रीय अर्धसैनिक बल 'संघ के सशस्त्र बल' हैं। पुरानी पेंशन योजना उन पर भी लागू होती है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हुई संक्षिप्त सुनवाई में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी (संघ के लिए) ने बताया कि याचिकाकर्ता, देश की रक्षा करने वाले बलों के साथ समानता की मांग कर रहे थे। उच्च न्यायालय ने माना है कि ओपीएस का लाभ, सीएपीएफ कर्मियों पर भी लागू होगा। दूसरी ओर, सीनियर एडवोकेट अंकुर छिब्बर ने प्रतिवादियों (सीएपीएफ कर्मियों) की ओर से अनुरोध किया कि इस मामले में एक निश्चित तारीख दे दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने उनके अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया गया कि मामला इतना जरूरी नहीं है। इसकी सुनवाई में कुछ समय लगेगा। वे छह से आठ सप्ताह बाद जल्दी सुनवाई के लिए ऐप्लिकेशन मूव कर सकते हैं।
बता दें कि सीएपीएफ के 11 लाख जवानों/अफसरों ने गत वर्ष 'पुरानी पेंशन' बहाली के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से अपने हक की लड़ाई जीती थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया। इस मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। जब केंद्र सरकार ने स्टे लिया, तभी यह बात साफ हो गई थी कि सरकार सीएपीएफ को पुरानी पेंशन के दायरे में नहीं लाना चाहती। हैरानी की बात तो ये है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल 11 जनवरी को दिए अपने एक अहम फैसले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों 'सीएपीएफ' को 'भारत संघ के सशस्त्र बल' माना था। दूसरी तरफ केंद्र सरकार, सीएपीएफ को सिविलियन फोर्स बताती है। अदालत ने इन बलों में लागू 'एनपीएस' को स्ट्राइक डाउन करने की बात कही। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, चाहे कोई आज इन बलों में भर्ती हुआ हो, पहले कभी भर्ती हुआ हो या आने वाले समय में भर्ती होगा, सभी जवान और अधिकारी, पुरानी पेंशन स्कीम के दायरे में आएंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने गत वर्ष इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा था, याचिकाकर्ता 'विशेष अनुमति याचिका' (एसएलपी) में संशोधन भी कर सकते हैं। कोई नया दस्तावेज जोड़ सकते हैं।
जानकारों का कहना है कि सीएपीएफ पर भारतीय सेना के कानून लागू होते हैं, फोर्स के नियंत्रण का आधार भी सशस्त्र बल है। इन बलों के लिए जो सर्विस रूल्स तैयार किए गए हैं, उनका आधार भी फौज है। इन सारी बातों के होते हुए भी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को 'पुरानी पेंशन' से वंचित किया गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय भी यह मान चुका है कि केंद्रीय अर्धसैनिक बल 'सीएपीएफ', 'भारत संघ के सशस्त्र बल' हैं। केंद्र सरकार, कई मामलों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को सशस्त्र बल मानने को तैयार नहीं होती। सीएपीएफ में पुरानी पेंशन का मुद्दा भी इसी चक्कर में फंसा हुआ है। एक जनवरी 2004 के बाद केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती हुए सभी कर्मियों को पुरानी पेंशन के दायरे से बाहर कर उन्हें 'एनपीएस' में शामिल कर दिया गया। इसी तर्ज पर सीएपीएफ जवानों को सिविल कर्मचारी मानकर उन्हें भी एनपीएस दे दिया गया।
उस वक्त सरकार का मानना था कि देश में सेना, नेवी और वायु सेना ही 'सशस्त्र बल' हैं। बीएसएफ एक्ट 1968 में भी कहा गया है कि इस बल का गठन 'भारत संघ के सशस्त्र बल' के रूप में हुआ है। इसी तरह सीएपीएफ के बाकी बलों का गठन भी भारत संघ के सशस्त्र बलों के रूप में हुआ है। कोर्ट ने माना है कि 'सीएपीएफ' भी भारत के सशस्त्र बलों में शामिल हैं। इस लिहाज से उन पर 'एनपीएस' लागू नहीं होता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 6 अगस्त 2004 को जारी पत्र में घोषित किया गया है कि गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत केंद्रीय बल, 'संघ के सशस्त्र बल' हैं।
सीएपीएफ के जवानों और अधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में फौजी महकमे वाले सभी कानून लागू होते हैं। सरकार खुद मान चुकी है कि ये बल तो भारत संघ के सशस्त्र बल हैं। इन्हें अलाउंस भी सशस्त्र बलों की तर्ज पर मिलते हैं। इन बलों में कोर्ट मार्शल का भी प्रावधान है। इस मामले में सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है। अगर इन्हें सिविलियन मानते हैं तो आर्मी की तर्ज पर बाकी प्रावधान क्यों हैं। फोर्स के नियंत्रण का आधार भी सशस्त्र बल है। जो सर्विस रूल्स हैं, वे भी सैन्य बलों की तर्ज पर बने हैं। अब इन्हें सिविलियन फोर्स मान रहे हैं तो ऐसे में ये बल अपनी सर्विस का निष्पादन कैसे करेंगे। इन बलों को शपथ दिलाई गई थी कि इन्हें जल, थल और वायु में जहां भी भेजा जाएगा, ये वहीं पर काम करेंगे। सिविल महकमे के कर्मी तो ऐसी शपथ नहीं लेते हैं।