नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्यों और अन्य पक्षों के साथ परामर्श कर महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश पर एक माडल नीति तैयार करे।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा नीति से संबंधित है और अदालतों के विचार करने के लिए नहीं है। इसके अलावा महिलाओं को ऐसी छुट्टी देने के संबंध में अदालत का निर्णय प्रतिकूल और हानिकारक साबित हो सकता है, क्योंकि नियोक्ता उन्हें काम पर रखने से परहेज कर सकते हैं।
पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि इस तरह की छुट्टी अधिक महिलाओं को कार्यबल का हिस्सा बनने के लिए कैसे प्रोत्साहित करेगी? इस तरह की छुट्टी अनिवार्य करने से महिलाएं कार्यबल से दूर हो जाएंगी। हम ऐसा नहीं चाहते।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, याची का कहना है मई 2023 में केंद्र को एक आवेदन सौंपा गया था। चूंकि, मुद्दा सरकारी नीति के विविध उद्देश्यों को उठाता है, इस कोर्ट के पास पिछले आदेश के संदर्भ में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।
मासिक धर्म मामले में नीति अंतिम चरण में
केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि स्कूल जाने वाली किशोरियों को मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों के वितरण पर राष्ट्रीय नीति तैयार करने का काम अंतिम चरण में है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पार्डीवाला की पीठ ने अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की दलीलों पर गौर किया और नीति तैयार करने के लिए दो महीने का समय देने के उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
बिहार में दिया जाता है मासिक धर्म अवकाश
त्रिपाठी ने तर्क दिया कि मातृत्व के कठिन चरणों में महिलाओं की देखभाल के लिए कानून में सभी प्रावधान किए जाने के बावजूद मातृत्व के सबसे पहले चरण में मासिक धर्म की अवधि को समाज की ओर से जानबूझकर या अनजाने में नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने कहा कि बिहार भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जो 1992 से महिलाओं को दो दिन की विशेष मासिक धर्म पीड़ा छुट्टी प्रदान कर रहा है।