डाकमत डालने वाले 1.70 करोड़ मतदाता परिणाम के लिए महत्वपूर्ण
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों की रणनीति में डाक मतपत्र अहम हिस्सा हैं। लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का मतदान खत्म होने के अगले ही दिन दो जून को कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया ब्लॉक का प्रतिनिधि मंडल निर्वाचन आयोग पहुंचा और ईवीएम में दर्ज मतों से पहले डाक मतपत्रों की गिनती और इसके परिणाम जारी करने की मांग की।
डाक मतपत्र को लेकर विपक्षी दल, इसलिए सचेत हैं क्योंकि इस लोकसभा चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में डाक मतपत्रों की संख्या कई गुना अधिक है। लगभग दो करोड़ मतदाता ऐसे हैं, जो बैलेट या डाक मतपत्र का इस्तेमाल करने के योग्य थे। लिहाजा, वे इस बात से चिंतित हैं कि यदि डाक मतपत्र से पहले, ईवीएम में दर्ज मतों की गिनती की जाती है तो इसमें हेरफेर हो सकता है।
क्यों है महत्ता: दरअसल, इस बार लोकसभा चुनाव में दिव्यांगों के साथ- साथ 85 साल से अधिक उम्र के मतदाता को घर से ही वोट करने की सुविधा दी गई। निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में 82 लाख मतदाता ऐसे हैं, जिनकी उम्र 85 साल से अधिक है और उन्हें घरों से वोट करने की इजाजत दी गई। वहीं देश में दिव्यांग मतदाता (40 फीसदी से अधिक दिव्यांग) मतदाताओं की संख्या भी 88 लाख है, जिन्हें घरों से वोट देने की अनुमति दी गई। आयोग ने 85 साल से अधिक उम्र और दिव्यांग मतदाताओं के घर चुनाव कर्मी भेजकर वोट डलवाए। दिव्यांग और 85 साल से अधिक उम्र के मतदाता की बात करें तो इसकी कुल संख्या करीब 1 करोड़ 70 लाख होती है।
19 लाख सर्विस वोटर: इस बार चुनाव में करीब 19 लाख सर्विस वोटर हैं. जो डाक मतपत्र के जरिए मतदान करते हैं। सूत्रों की मानें तो माना जा रहा है कि इस बार इनमें से अधिकांश ने वोट किया है। लोकसभा चुनाव संपन्न कराने के लिए करीब एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों और अधिकारियों की तैनाती की गई थी। चुनाव ड्यूटी में तैनात कर्मचारी-अधिकारी भी वोट डालने के लिए डाकमत का प्रयोग करते हैं। विपक्षी दल चुनाव आयोग से डाक मतों की गिनती ईवीएम से पहले कराने की मांग कर चुके हैं ताकि इसका असर परिणाम पर नहीं हो। डाक मतों को लेकर विपक्ष इसलिए भी सचेत है, क्योंकि पिछले साल हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की तुलना में अधिक डाक मत मिलने का दावा किया था।