हाईकोर्ट ने कहा, यह बेबस महिला को अभाव से बचाने के लिए
चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम आदेश जारी करते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि महिला संपन्न और सुयोग्य है तो वह अपने पति से गुजारा भत्ते के लिए दावा नहीं कर सकती।
यह कल्याणकारी व्यवस्था है जो पति से अलग होने के बाद बेबस पत्नी को अभाव की स्थिति से बचाने और उसी के समान जीवनयापन के लिए है। इसे पति का उत्पीड़न करने का माध्यम नहीं बनने देना चाहिए। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ते के लिए दाखिल महिला की याचिका खारिज कर दी।
महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए बताया कि दिसंबर 2018 में चंडीगढ़ की फैमिली कोर्ट ने उसके लिए 10 हजार गुजारा भत्ता तय किया था। इस फैसले के खिलाफ पति ने अपील की तो एडिशनल सेशन जज ने गुजारा भत्ते के आदेश को रद्द कर दिया था।
याची महिला ने इस आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करते हुए बताया कि भले ही वह योग्य डॉक्टर है, लेकिन बेटे के दिव्यांग होने और उसकी 24 घंटे देखभाल के चलते वह प्रैक्टिस नहीं कर पा रही है। याची ने अपने पति से 2003 में आपसी समझौते के आधार पर तलाक लिया था। उस दौरान गुजारा भत्ते को लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ था। बाद में याची ने गुजारा भत्ते के लिए केस दाखिल किया और तब जाकर यह तय किया गया था।
पत्नी असमर्थ है, यह देखना जरूरी... इस आदेश के खिलाफ पति ने अपील की जहां आदेश रद्द हो गया। हाईकोर्ट ने एडिशनल सेशन जज के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील पर फैसला सुनाते हुए कहा कि गुजारा भत्ते की व्यवस्था सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने और आश्रित महिलाओं, बच्चों और माता-पिता की रक्षा के लिए है।
इस राशि के निर्धारण के समय यह देखना जरूरी है कि क्या पति के पास पर्याप्त संसाधन हैं और क्या इनके उपलब्ध होने पर भी वह पत्नी का भरण-पोषण करने में लापरवाही या इन्कार तो नहीं कर रहा। साथ ही यह भी देखना अनिवार्य है कि पत्नी अपना भरण- पोषण करने में असमर्थ है। वर्तमान मामले में ऐसा नहीं है कि याची के पास अपने और अपने बच्चों के भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।