सरकारी नौकरी में प्रमोशन अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका को खारिज करते हुए गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा अपनाई गई पदोन्नति प्रक्रिया को बरकरार रखा। कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीः
1. 'मेरिट-कम-सीनियरिटी' के सिद्धांत परः कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 'मेरिट-कम-सीनियरिटी' का सिद्धांत यह नहीं कहता कि वरिष्ठता अप्रासंगिक है। इसका मतलब है कि मेरिट प्रमुख भूमिका निभाती है और वरिष्ठता केवल तब मानी जाती है जब मेरिट और क्षमता लगभग समान होती हैं। कोर्ट ने कहा, "मेरिट-कम-सीनियरिटी का सिद्धांत मेरिट और क्षमता पर अधिक जोर देता है, और वरिष्ठता की भूमिका कम होती है।"
2. पदोन्नति प्रक्रिया परः कोर्ट ने पाया कि गुजरात उच्च न्यायालय की पदोन्नति प्रक्रिया, जिसमें उपयुक्तता परीक्षण और वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR), औसत निपटान दर और निर्णयों का मूल्यांकन शामिल है, 'मेरिट-कम-सीनियरिटी' के सिद्धांत के अनुरूप थी। कोर्ट ने नोट किया, "उपयुक्तता परीक्षण एक उम्मीदवार की मेरिट के विभिन्न पहलुओं जैसे कानून का ज्ञान, निर्णयों की गुणवत्ता, ACR, आदि का मूल्यांकन करता है, साथ ही कार्यकाल के दौरान प्रदर्शित दक्षता भी देखी जाती है।"
3. रिट याचिका की स्थिरता परः कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 226 के तहत वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका की स्थिरता को प्रभावित नहीं करती है। कोर्ट ने जोर देकर कहा, "यह नियम कि पहले वैकल्पिक उपाय का लाभ उठाया जाए, इस कोर्ट द्वारा स्व-नियंत्रण का एक नियम है जो सुविधानुसार लागू किया जाता है।"
कोर्ट की टिप्पणियां
कोर्ट ने 'मेरिट-कम-सीनियरिटी' की व्याख्या और पदोन्नति में वरिष्ठता की भूमिका के बारे में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीः
"मेरिट-कम-सीनियरिटी का मतलब है कि मेरिट प्रमुख भूमिका निभाती है, और वरिष्ठता केवल तब मानी जाती है जब मेरिट और क्षमता लगभग समान होती हैं।"
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Promotion in Government Job: देश की सर्वोच्च अदालत ने सरकारी नौकरी में प्रमोशन को लेकर बड़ी बात कही है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन देने के मानदंडों का संविधान में कहीं भी जिक्र नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सरकार और कार्यपालिका प्रमोशन के मानदंडों को तय करने के लिए स्वतंत्र है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने अपने फैसले में कहा, "भारत में कोई भी सरकारी कर्मचारी प्रमोशन को अपना अधिकार नहीं मान सकता है, क्योंकि संविधान में इसके लिए कोई मानदंड निर्धारित नहीं किया गया है।''
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि विधायिका या कार्यपालिका रोजगार की प्रकृति और उम्मीदवार से अपेक्षित कार्यों के आधार पर प्रमोशन के पदों पर रिक्तियों को भरने की विधि तय कर सकती है। कोर्ट ने आगे कहा कि न्यायपालिका यह तय करने के लिए समीक्षा नहीं कर सकती कि प्रमोशन के लिए अपनाई गई नीति 'सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवारों' के चयन के लिए उपयुक्त है या नहीं।
आपको बता दें कि गुजरात में जिला न्यायाधीशों के चयन पर विवादों पर अपना फैसला सुनाते हुए पीठ ने ये बातें कही हैं। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने फैसला लिखते हुए कहा, "हमेशा यह धारणा होती है कि लंबे समय से काम कर रहे कर्मचारियों ने संस्था के प्रति वफादारी दिखाई है और इसलिए वे अपने करियर में संस्था से भी इसी तरह के व्यवहार के हकदार हैं।"
उन्होंने आगे कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने लगातार यह फैसला सुनाया है कि जहां योग्यता और वरिष्ठता के सिद्धांत पर प्रमोशन देना तय है, वहां योग्यता पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए।
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