पुरानी पेंशन बहाली का इंतजार कर रहे केंद्रीय अर्धसैनिक बल 'सीएपीएफ' के 11 लाख जवानों/अफसरों के लिए बड़ा अपडेट है। इन बलों के कुछ जवानों और अधिकारियों को एनपीएस से बाहर निकालकर उन्हें ओपीएस में शामिल किया जाएगा। केंद्र सरकार भी इसके लिए राजी है। दूसरा मामला, बाकी बचे जवानों का है। इसमें दस लाख से अधिक जवान व अधिकारी शामिल हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल 11 जनवरी को दिए अपने एक अहम फैसले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों 'सीएपीएफ' को 'भारत संघ के सशस्त्र बल' माना था। अदालत ने इन बलों में लागू 'एनपीएस' को स्ट्राइक डाउन कर ओपीएस लागू करने की बात कही थी। इस फैसले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्टे ले लिया। अब इस मामले की सुनवाई अगस्त में होगी। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि पांच अगस्त से जो सप्ताह शुरु हो रहा है, उसमें केस को लिस्ट करें। याचिकाकर्ता 'विशेष अनुमति याचिका' (एसएलपी) में संशोधन भी कर सकते हैं। कोई नया दस्तावेज जोड़ सकते हैं। सर्वोच्च अदालत में याचिकाकर्ताओं की तरफ से जवाब फाइल किया जाएगा।
'एनपीएस' को स्ट्राइक डाउन करने की बात
बता दें कि केंद्रीय बलों के जवानों ने गत वर्ष दिल्ली हाईकोर्ट से अपने हक की लड़ाई जीती थी। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को 'भारत संघ के सशस्त्र बल' मानते हुए अदालत ने इनमें लागू 'एनपीएस' को स्ट्राइक डाउन करने की बात कही। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, चाहे कोई आज इन बलों में भर्ती हुआ हो, पहले कभी भर्ती हुआ हो या आने वाले समय में भर्ती होगा, सभी जवान और अधिकारी, पुरानी पेंशन स्कीम के दायरे में आएंगे। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया।
केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में फरवरी 2024 तक स्थगन आदेश मिल गया। अब सर्वोच्च अदालत ने एसएलपी नंबर 22511/2023, 21758/2023 और डायरी नंबर 52544/2023 व 613/2024 में कहा है कि पांच अगस्त (2024) से जो सप्ताह शुरु हो रहा है, उसमें इस केस को लिस्ट करें। सर्वोच्च अदालत ने एसएलपी में संशोधन करने की भी इजाजत दे दी।
केवल इन्हें मिलेगा पुरानी पेंशन का फायदा
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के ऐसे कार्मिक, जिन्हें ज्वाइनिंग के बाद राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) में शामिल कर दिया गया था, अब वे दोबारा से पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) का लाभ ले सकेंगे। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इस बाबत आदेश जारी हो चुके हैं। हालांकि यह केस भी सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा है। खास बात ये है कि इसमें केंद्र सरकार भी कुछ शर्तें पूरी करने वाले कर्मियों को ओपीएस में शामिल करने के लिए राजी हो गई।
इस संबंध में डीओपीटी ने 3 मार्च 2023 को एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया था। उसमें कहा गया था कि ऐसे कर्मी, जिनकी भर्ती प्रक्रिया 2003 में शुरु हुई थी या उसका विज्ञापन आया था, लेकिन उनकी ज्वाइनिंग 2004 या उसके बाद हुई। केंद्र सरकार के आदेशों में कहा गय कि ऐसे अधिकारी या कार्मिक, जो राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली को अधिसूचित किये जाने की तारीख यानी 22 दिसंबर, 2003 से पहले विज्ञापित या अधिसूचित किए गए पदों के तहत, केंद्र सरकार की सेवाओं में शामिल हुए हैं, अब ऐसे सभी कर्मी या अधिकारी, केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 (अब 2021) के तहत पुरानी पेंशन योजना में शामिल होने के योग्य हैं।
केंद्र सरकार ने दिया था एक विकल्प
सीएपीएफ के अलावा दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार के दूसरे कर्मियों को भी 31 अगस्त तक एक विकल्प देने के लिए कहा गया। सरकार ने कहा, कोई भी योग्य कार्मिक इस विकल्प से दूर न रहे। संबंधित विभागों द्वारा सभी योग्य कर्मियों तक यह सूचना पहुंचाने का हर संभव प्रयास किया गया। इसके लिए वायरलैस पर सूचना और रोल कॉल के दौरान कार्मिकों को यह जानकारी दी गई। ये एकबारगी विकल्प था। गत वर्ष 31 अक्तूबर तक सभी विभागों में इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कहा गया।
सरकार ने कहा, अगर कोई योग्य कर्मचारी, उक्त अवधि तक पुरानी पेंशन योजना का विकल्प नहीं चुनता है तो इसका मतलब यह निकाला जाएगा कि वह कर्मी राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में रहने का इच्छुक है। उसे एनपीएस के तहत लाभ प्रदान किए जाएंगे। कोई भी योग्य कर्मचारी, अब इन दोनों योजनाओं में से कोई एक विकल्प चुन लेता है तो वह अंतिम विकल्प माना जाएगा। उसके बाद विकल्प में कोई बदलाव नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने डिसमिस कर दी सभी एसएलपी
केंद्र सरकार द्वारा उक्त निर्णय लेने से पहले ही यह केस अदालत में चल रहा था। इस मामले में भी केद्र सरकार ने अनेक एसएलपी फाइल की थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने गत माह ही उन्हें डिसमिस कर दिया। 23 एसएलपी ऐसी थीं, जिन्हें डायरी नंबर ही अलॉट हुआ था, इन्हें भी डिसमिस कर दिया गया। अब दिसंबर 2003 से पहले जितने भी कर्मियों की भर्ती प्रक्रिया शुरु हुई थी, लेकिन ज्वाइनिंग 2004 में या उसके बाद हुई, वे सभी ओपीएस के दायरे में आएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को रिकॉल करने की छूट भी सरकार को दी है। मतलब, अगर कहीं पर कोई गलती रह गई है तो सरकार उसमें सुधार कर सकती है। इस मामले की प्रक्रिया चलती रहेगी, जबकि दूसरे केस में अगस्त तक जवाब फाइल करने होंगे।