नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 'यदि सरकार के कामकाज की हर आलोचना या विरोध को अपराध माना जाएगा तो लोकतंत्र, जो भारत के संविधान की एक अनिवार्य विशेषता है, जीवित नहीं रहेगा।'
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना करने पर महाराष्ट्र के कोल्हापुर के कॉलेज में एक प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमा को रद्द करते हुए की है।
जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने अपने फैसले में विशेष तौर पर सार्वजनिक महत्व के मामलों में 'असहमति और आलोचना' व्यक्त करने के लोगों के मौलिक अधिकारों पर जोर दिया है।
पीठ ने कहा है कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने के केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना करना या विरोध में व्हाट्सएप स्टेटस लगाना आईपीसी की धारा 153ए के तहत अपराध नहीं हो सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि देश के सभी नागरिकों को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो हिस्सों में विभाजित किए जाने के सरकार की कार्रवाई की आलोचना करने का अधिकार है।
पीठ ने कहा है कि 'जिस दिन जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, उस दिन को 'काला दिवस' के रूप में वर्णित करना विरोध और पीड़ा की अभिव्यक्ति है।
पीठ ने कहा है कि यदि राज्य के कामकाज की हर आलोचना या विरोध को आईपीसी की धारा 153ए के तहत अपराध माना जाएगा, तो लोकतंत्र, जो भारत के संविधान की एक अनिवार्य विशेषता है, जीवित नहीं रहेगा।' इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने पाकिस्तान को उसके स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएं देना भी आईपीसी की धारा 153ए की उपधारा 1 के तहत किसी तरह का अपराध नहीं है।