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Tuesday, March 26, 2024

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : निर्धारित समयावधि के बाद निरस्त नहीं हो सकता पट्टा

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : निर्धारित समयावधि के बाद निरस्त नहीं हो सकता पट्टा


यह आदेश न्यायमूर्ति चंद्र कुमार राय की एकल पीठ ने अलीगढ़ हीरालाल की ओर से पट्टा निरस्तीकरण के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने अंतरिम आदेश के एवज में ग्रामसभा की निधि में याची की ओर से जमा दस हजार रुपये दो माह में वापस करने का निर्देश भी दिया है।




इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पट्टा आवंटन के 15 साल बाद उठाई गई आपत्ति के आधार पर पट्टा निरस्तीकरण के आदेश को अवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा, उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन व भू-राजस्व संहिता में निर्धारित अवधि के बाद पट्टा निरस्त नहीं किया जा सकता।
 

यह आदेश न्यायमूर्ति चंद्र कुमार राय की एकल पीठ ने अलीगढ़ हीरालाल की ओर से पट्टा निरस्तीकरण के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने अंतरिम आदेश के एवज में ग्रामसभा की निधि में याची की ओर से जमा दस हजार रुपये दो माह में वापस करने का निर्देश भी दिया है।


मामला अलीगढ़ की कोल तहसील के पनेंठी गांव का है। याची हीरालाल समेत 19 को गांव की प्रबंध समिति ने 1976 में कृषि भूमि पट्टे पर दी थी। उनके नाम भी राजस्व अभिलेखों में अंकित हो गए थे। वे जमीन पर वास्तविक कब्जे में भी थे। 15 साल बाद विपक्षी ग्रामीणों ने उन्हें पट्टा आवंटन के लिए अयोग्य बताते हुए अपर जिलाधिकारी के समक्ष आपत्तियां दाखिल कीं। इस पर याची समेत सभी 19 आवंटियों को कारण बताओं नोटिस जारी करने के बाद 16 सितंबर 1993 को पट्टा निरस्त कर दिया गया।


इस आदेश के खिलाफ अलीगढ़ के आयुक्त की अदालत में पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की हुई, जिसे अपर आयुक्त ने राजस्व परिषद को संदर्भित कर दिया था। इसे 17 जनवरी 1997 को निरस्त करते हुए मामला पुर्नविचार के लिए डीएम के पास वापस भेजने का आदेश पारित कर दिया गया। याची ने इस आदेश का वापस लेने की अर्जी दी तो राजस्व परिषद ने उसे भी खारिज कर दिया।


जिसके खिलाफ याची ने वर्ष 2004 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याची के वकील सुरेश मौर्या ने दलील दी कि उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन व भू-राजस्व संहिता की धारा 198 (6) के मुताबिक नवंबर 1980 से पूर्व आवंटित पट्टों के खिलाफ आपत्तियां दाखिल किए जाने की अवधि सात वर्ष निर्धारित है। वहीं, मौजूदा मामले में 15 साल बाद आपत्तियां उठाई गई है, जो अवैधानिक हैं।


जबकि राज्य सरकार के अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता राजेश तिवारी और गांव सभा के वकील केके सिंह ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि जांच आपत्तियों पर हुई जांच के दौरान याची अपात्र पाया गया, जिसके कारण उसके पक्ष में दिया गया पट्टा रद्द किया गया है।
 

कोर्ट ने रिषि पाल व अन्य के मामले में पारित विधि व्यवस्था और उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भू-राजस्व संहिता के प्रावधानों का हवाला देते हुए याचिका स्वीकार कर ली और अपर जिलाधिकारी द्वारा पारित पट्टा निरस्तीकरण के आदेश को रद्द कर दिया।

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