कोर्ट ने कहा, इस तरह का भेदभाव भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता को मातृत्व अवकाश देने से मना करना मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के मुताबिक अपराध है। इसमें कहा गया है कि अधिनियम के खंड 5(1) के अनुसार, प्रत्येक महिला मातृत्व लाभ के भुगतान की हकदार होगी और उसका नियोक्ता इसके लिए उत्तरदायी होगा।
कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट ने कि मातृत्व लाभ पर नियमित व संविदा कर्मचारियों के बीच भेदभाव स्वीकार्य नहीं है। हाईकोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को एक महिला कार्यकारी इंटर्न को मुआवजा देने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता 16 अगस्त, 2011 से तीन साल की अवधि के लिए आरबीआई के साथ एक कार्यकारी प्रशिक्षु के रूप में अनुबंध के आधार पर कार्यरत थी। उसने 180 दिनों के सवेतनिक मातृत्व अवकाश की अनुमति देने में नियामक के इन्कार पर हाईकोर्ट का रुख किया था।
जस्टिस राजा बसु चौधरी ने फैसले में कहा कि एक महिला के प्रसव और मातृत्व अवकाश के अधिकार के सवाल पर बैंक के नियमित और संविदा कर्मचारियों में भेदभाव स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने आरबीआई को 180 दिन के मातृत्व अवकाश का वेतन मुआवजा के रूप में देने का निर्देश दिया। यह देखते हुए कि आरबीआई आमतौर पर अपने मास्टर सर्कुलर के अनुसार कर्मचारियों को मातृत्व लाभ प्रदान करता है, जस्टिस चौधरी ने कहा कि याचिकाकर्ता को ऐसे लाभ से वंचित रखना भेदभावपूर्ण है। यह एक वर्ग के भीतर दूसरा वर्ग बनाने जैसा है।
आरबीआई को अनुमति देना कर्मचारी की गर्भावस्था खतरे में डालने जैसा : न्यायमूर्ति बसु चौधरी ने कहा, यदि आरबीआई को मातृत्व लाभ के मूल अधिकार से वंचित रखने की अनुमति दी जाती है और याचिकाकर्ता को मुआवजा नहीं मिलता है तो यह एक कर्मचारी को गर्भावस्था के दौरान काम करने के लिए मजबूर करने के समान होगा। ऐसा निर्णय मां और भ्रूण दोनों को खतरे में डाल सकता है।