डिप्टी डायरेक्टर (प्रशासन) निदेशालय सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास को छह सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश
प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि अंशकालिक कर्मचारी भी 'समान कार्य-समान वेतन' सिद्धांत के तहत पूर्णकालिक कर्मचारी के समान न्यूनतम वेतन पाने के हकदार हैं। यह सिद्धांत उन दैनिक, अस्थायी और अनुबंधित कर्मचारियों पर भी लागू होता है जो नियमित कर्मचारियों की तरह ही काम करते हैं।
इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने डिप्टी डायरेक्टर (प्रशासन) सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास निदेशालय लखनऊ के अंशकालिक माली पद पर कार्यरत याची को न्यूनतम वेतनमान देने से इन्कार करने संबंधी आदेशों को रद कर दिया है और छह सप्ताह में विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि डिप्टी डायरेक्टर ने न्यूनतम वेतनमान देने से इन्कार करते समय कार्य की प्रकृति पर ध्यान नहीं दिया, जो अनुचित है। न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल ने भारत गिरि की याचिका पर यह आदेश दिया है।
याची की तरफ से अधिवक्ता लवलेश शुक्ल ने बहस की। कहा कि याची जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी प्रयागराज कार्यालय में अंशकालिक माली है, लेकिन उसे न्यूनतम वेतन नही दिया जा रहा जबकि पूरे दिन नियमित कर्मचारियों की तरह काम लिया जाता है। कार्य की प्रकृति पूर्णकालिक है। यदि कोई कर्मचारी दूसरे कर्मचारी के समान काम या जिम्मेदारी निभाता है तो उसमें विभेद नहीं किया जाना चाहिए और वह समान वेतन का हकदार हैं।
सरकारी अधिवक्ता का कहना था कि कार्यालय में माली का पद स्वीकृत नहीं है। इसी कारण अंशकालिक माली के रूप में कार्य लेने के लिए याची की नियुक्ति की गई है। वह अंशकालिक कर्मचारी होने के नाते नियमित वेतनमान माने का हकदार नहीं है। कोर्ट ने इस तर्क को सही नहीं माना और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जगजीत सिंह केस के समान कार्य समान वेतन के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया।
अंशकालिक कर्मचारी भी पूर्णकालिक के समान वेतन का हकदार : हाईकोर्ट
अंशकालिक माली को न्यूनतम वेतन देने से इन्कार करने का आदेश निरस्त
जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय में कार्यरत माली ने दाखिल की थी याचिका
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अंशकालिक कर्मचारी भी पूर्णकालिक कर्मचारी के समान वेतन पाने का हकदार है। बशर्ते, उसके द्वारा किए जा रहे कार्य की प्रकृति नियमित कर्मचारी के समान हो। यह अहम फैसला न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की अदालत ने जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी, प्रयागराज में कार्यरत माली भारत गिरि की याचिका स्वीकार करते हुए सुनाया। याची ने सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास निदेशालय द्वारा पूर्णकालिक माली के समान वेतन की मांग को खारिज करने वाले आदेश को चुनौती दी थी।
अधिवक्ता लवलेश तिवारी ने दलील दी कि याची जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी के कार्यालय में एकमात्र माली है, जो पूर्णकालिक माली की भांति बाग बगीचे की देखरेख करता है। जबकि, उसे नियमित कर्मचारी की तरह न्यूनतम वेतन प्रदान नहीं किया जा रहा है। याची ने समान कार्य के लिए समान वेतन की मांग को लेकर प्रत्यावेदन दिया था, जिसे उपनिदेशक ने खारिज कर दिया था।
याची के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जगजीत सिंह और सभाशंकर के मामले में दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए विभाग के निर्णय को असांविधानिक बताया। राज्य सरकार के स्थायी अधिवक्ता का कहना था कि याची की नियुक्ति नहीं की गई है बल्कि अंशकालिक तौर पर विभाग द्वारा आवश्यकतानुसार काम लिया जाता है।
कोर्ट याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित विधि व्यवस्थाओं के आलोक में याची को पूर्णकालिक कर्मचारी की भांति न्यूनतम वेतन का हकदार माना। न्यूनतम वेतन देने से इन्कार करने वाले आदेश को निरस्त करते हुए सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास लखनऊ के उपनिदेशक को इस मामले में समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत के अनुसार छह हफ्ते में नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।