अमान्य विवाह से पैदा हुए संतान का माता-पिता की संपत्ति पर हक
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अमान्य विवाह से पैदा बच्चों को माता- पिता की संपत्ति में हिस्सा से देने से इनकार नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यह निर्णय दिया है।
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि 'शून्य और अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैध माना जाएगा और पैतृक संपत्ति में वैध हिस्सा तय करने के उद्देश्य से उन्हें सामान्य पूर्वज के विस्तारित परिवार के रूप में माना जाएगा।'
पीठ ने कहा कि एक बार सामान्य पूर्वज ने स्वीकार कर लिया कि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैध संतान माना जाता है, तो ऐसे बच्चे उसी हिस्से के हकदार होंगे जो वैध विवाह से जन्म लेने वाले बच्चों को पैतृक संपत्ति में मिलता है। मामले की सुनवाई के दौरान यह सवाल आया था कि 'क्या अवैध विवाह से जन्म लेने वाले बच्चे एक सामान्य पूर्वज की संपत्ति में उसके उत्तराधिकारी के रूप में हिस्सा पाने के हकदार होंगे?
मामले के तथ्यों, कानूनी पहलुओं और शीर्ष अदालत के पूर्व के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि अमान्य विवाह से जन्म लेने वाले बच्चों को अपनी वैध संतान मानने की माता-पिता की स्वीकृति को भी उसकी वैध संतान के खिलाफ सबूत माना जाएगा, जो सामान्य पूर्वज के माध्यम से दावा कर रहा है।
वैध बच्चे के हक में सुनाया था फैसला
दरअसल, तामिलनाडु के कोयंबटूर निवासी मुथुसामी गौंडर ने तीन शादिया की थी। गौंडर की मौत 1982 में हो चुकी है। गौंडर की दो शादियों को अमान्य घोषित कर दिया गया था। इन तीन शादियों में से गौंडर के पांच बच्चे हैं यानी चार बेटे और एक बेटी। वैध विवाह से पैदा हुए बेटे (प्रतिवादी संख्या 3) ने निचली अदालत में संपति के विभाजन के लिए वाद दाखिल किया। उन्होंने अपने पिता के अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी मामले में प्रतिवादी बनाया था।
इस मामले में निचली अदालत ने वैध बच्चे के हक में फैसला सुनाया था। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ अमान्य विवाद से पैदा हुई संतान ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बहाल रखते हुए अपील खारिज कर दी थी।