शीर्ष अदालत ने राजस्थान में एक पारिवारिक अदालत के समक्ष लंबित वैवाहिक विवाद में स्थानांतरण याचिका की अनुमति देते हुए यह आदेश पारित किया। शीर्ष अदालत ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि पक्षों के ज्ञापन में पति-पत्नी दोनों की जाति का उल्लेख किया गया था। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि अब से वादी के जाति और धर्म का उल्लेख करने की जरूरत नहीं है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री और अन्य सभी अदालतों को तुरंत अदालती मामलों में वादकारियों की जाति या धर्म का उल्लेख करने की प्रथा को बंद करने का निर्देश किया है।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उनके अधिकार क्षेत्र के तहत उच्च न्यायालयों या अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष दायर किसी भी याचिका में पक्षकारों के ज्ञापन में किसी वादी की जाति या धर्म का उल्लेख न हो।
पीठ ने कहा कि हमें इस न्यायालय या नीचे की अदालतों के समक्ष किसी भी वादी की जाति/धर्म का उल्लेख करने का कोई कारण नहीं दिखता है। इस तरह की प्रथा को खत्म कर दिया जाना चाहिए। साथ ही कहा, "इस अदालत के समक्ष दायर याचिका/कार्यवाही के पक्षों के ज्ञापन में पार्टियों की जाति या धर्म का उल्लेख नहीं किया जाएगा, भले ही नीचे की अदालतों के समक्ष ऐसा कोई विवरण प्रस्तुत किया गया हो।
शीर्ष अदालत ने राजस्थान में एक पारिवारिक अदालत के समक्ष लंबित वैवाहिक विवाद में स्थानांतरण याचिका की अनुमति देते हुए यह आदेश पारित किया। शीर्ष अदालत ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि पक्षों के ज्ञापन में पति-पत्नी दोनों की जाति का उल्लेख किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि यदि नीचे की अदालतों के समक्ष दायर पक्षों के ज्ञापन में किसी भी तरह से बदलाव किया जाता है, तो रजिस्ट्री आपत्ति उठाती है और वर्तमान मामले में, क्योंकि दोनों पक्षों की जाति का उल्लेख अदालत के समक्ष किया गया था, इसलिए उनके पास स्थानांतरण याचिका में उनकी जाति का उल्लेख करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि उसके आदेश को तत्काल अनुपालन के लिए बार के सदस्यों के साथ-साथ रजिस्ट्री के ध्यान में लाया जाएगा। पीठ ने कहा, "इस आदेश की एक प्रति संबंधित रजिस्ट्रार के समक्ष अवलोकन के लिए रखी जाएगी और कड़ाई से अनुपालन के लिए सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को प्रसारित की जाएगी।"
मुकदमे में वादियों की जाति या धर्म का उल्लेख अब नहीं : सुप्रीम कोर्ट
शीर्ष कोर्ट की रजिस्ट्री व अन्य सभी अदालतों को तत्काल रोक लगाने के निर्देश
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालती मामलों में वादियों की जाति या धर्म का उल्लेख करने की प्रथा बंद की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री और सभी अदालतों को भी इस पर तत्काल रोक लगाने के निर्देश दिए हैं।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला की पीठ ने सभी हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि हाईकोर्ट या अधीनस्थ अदालतों में दाखिल किसी भी याचिका में पक्षों के ज्ञापन में वादी की जाति या धर्म का उल्लेख नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा, हमें इस अदालत या किसी भी अधीनस्थ कोर्ट के समक्ष वादी के जाति-धर्म के उल्लेख का कोई कारण नजर नहीं आता। ऐसी परिपाटी तत्काल बंद होनी चाहिए।
राजस्थान की पारिवारिक अदालत में लंबित वैवाहिक विवाद को पंजाब की पारिवारिक अदालत में स्थानांतरित करने की अनुमति देते हुए पीठ ने यह आदेश सुनाया।