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Tuesday, January 16, 2024

सामान्य बातचीत के दौरान किसी को पागल कहना अनुचित व असभ्य है, लेकिन अपराध नहींः हाईकोर्ट

सामान्य बातचीत के दौरान किसी को पागल कहना अनुचित व असभ्य है, लेकिन अपराध नहींः हाईकोर्ट

जांच के दौरान NGO संचालिका ने अधिवक्ता को कहा था- 'दिस पर्सन इज मैड'


प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सामान्य बातचीत के दौरान किसी को पागल कहना अपराध नहीं है। जाने अंजाने की गई ऐसी सहज टिप्पणी को तब तक अपराध नहीं माना जा सकता जब तक परिस्थितियों से यह स्पष्ट न हो कि ऐसा वक्तव्य किसी को शांतिभंग के लिए उकसाने के मकसद से दिया गया था।


यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की अदालत ने एनजीओ संचालिका याची जूडिथ मारिया मोनिका किलर उर्फ संगीता जेके की ओर से निचली अदालत द्वारा जारी तलबी आदेश को चुनौती  देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए सुनाया।


मामला वाराणसी जिले का है। शिकायत कर्ता दशरथ कुमार दीक्षित एक अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अधिवक्ता ने दिव्यांगजनों के कल्याण के लिए मिलने वाली सरकारी और विदेशी सहायता राशि का दुरुपयोग करने का आरोप सामाजिक संस्था किरण की संचालिका संगीता जेके पर लगाते हुए डीएम से जांच की मांग की थी।

डीएम ने जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिकारी को मामले की जांच सौंपी थी। जांच के दौरान हुई पूछताछ में याची संगीता जेके ने शिकायतकर्ता अधिवक्ता के संबंध में कहा "दिस पर्सन इस मैड" (यह व्यक्ति पागल है)। शिकायतकर्ता दशरथ ने संगीता जेके के इस टिप्पणी पर आपत्ति जताई और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में संगीता जेके के खिलाफ मानहानि का दावा किया। मजिस्ट्रेट की अदालत ने समन (तलबी आदेश) जारी कर दिया। 

समन के खिलाफ जिला जज की अदालत से भी राहत ने मिलने पर याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने याची की ओर से दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए दोनों निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया।


'पागल' कहना अनुचित व असभ्य लेकिन आइपीसी में अपराध नहीं, हाई कोर्ट ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का आदेश किया रद

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी को 'पागल' कहना असभ्य एवं अनुचित हो सकता है, लेकिन यह आइपीसी की धारा 504 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, 'ऐसा प्रतीत होता है कि यह लापरवाही से दिया गया भटका हुआ बयान था, इसका इरादा किसी व्यक्ति को सार्वजनिक शांति भंग करने या कोई अन्य अपराध करने के लिए उकसाने का नहीं हो सकता।'

कोर्ट ने कहा, 'भले ही ऐसे शब्दों का उच्चारण जानबूझकर अपमान के रूप में लिया जाता है, लेकिन मेरी राय में इसे इस हद तक नहीं माना जा सकता कि किसी भी व्यक्ति को शांति भंग करने के लिए उकसाया गया है।' यह टिप्पणी न्यायमूर्ति ज्योत्स्ना शर्मा ने की है। कहा है कि अक्सर अनौपचारिक माहौल में ऐसी टिप्पणियां लापरवाही में की जाती हैं। इसमें कोई आपराधिक आशय नहीं होता। शिकायतकर्ता वकील दशरथ कुमार दीक्षित ने सीजेएम वाराणसी कोर्ट के समक्ष याची संगीता जेके और 10 अन्य के खिलाफ आइपीसी की धारा 500 के तहत मानहानि का दावा किया।

आरोप लगाया गया कि याची ने उसे पागल व्यक्ति कहकर अपमानित किया था। परिवादी व गवाहों के बयान दर्ज किए गए। मजिस्ट्रेट ने धारा 504 के तहत तलब करने के लिए समन जारी किया। इसे जिला न्यायाधीश वाराणसी के समक्ष पुनरीक्षण अर्जी में चुनौती दी गई, जो खारिज कर दी गई। दोनों आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। दलील दी गई कि घटना मई 2017 की है।

 कोर्ट ने कहा, याची के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि बैठक में कई अन्य लोगों के सामने उसने कहा कि यह व्यक्ति (शिकायतकर्ता) पागल है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लापरवाही से दिया गया बयान था। इरादा अपराध के लिए उकसाना नहीं था। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का आदेश रद कर दिया।

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