'पुरानी पेंशन' के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठनों को अब विपक्ष की तरफ से भरपूर समर्थन मिल रहा है। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी ने पुरानी पेंशन का वादा कर सत्ता में वापसी कर ली है। अब जहां भी चुनाव हो रहा है, वहीं पर कांग्रेस ने ओपीएस बहाली के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र या वचन पत्र में शामिल कर लिया है।
दिल्ली के रामलीला मैदान में ओपीएस बहाली की मांग के लिए हुई सरकारी कर्मियों की दो रैलियों ने केंद्र सरकार को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। अब ओपीएस पर संभावित सियासी नुकसान से बचने के लिए 'डैमेज कंट्रोल' की तैयारी हो रही है। सरकार, एनपीएस में ही ओपीएस जैसे कुछ प्रावधानों को शामिल कर सकती है। रिटायरमेंट पर मिली बेसिक सैलेरी का, एनपीएस में 40 से 45 फीसदी भुगतान बतौर पेंशन देने पर विचार हो रहा है। दूसरी तरफ कर्मचारी संगठनों का कहना है कि ये बातें केवल 'ओपीएस' से ध्यान भटकाने का प्रयास है। उन्हें बिना गारंटी वाली 'एनपीएस' योजना को खत्म करने और परिभाषित एवं गारंटी वाली 'पुरानी पेंशन योजना' की बहाली से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
ओपीएस पर अब हो रही तीसरी रैली की तैयारी
पुरानी पेंशन पर केंद्र एवं राज्यों के सरकारी कर्मियों की एक समान राय है। 10 अगस्त को नई दिल्ली के रामलीला मैदान केंद्रीय कर्मियों ने एक विशाल रैली आयोजित की थी। इसमें राज्य सरकार के कर्मियों ने भी हिस्सा लिया था। कर्मचारियों ने बिना गारंटी वाली एनपीएस योजना को खत्म कर, ओपीएस को उसके मूल रूप में लागू करने की मांग की थी। इस रैली के बाद यह तय हो गया था कि कर्मचारी संगठन, 'पुरानी पेंशन' पर निर्णायक लड़ाई की ओर बढ़ रहे हैं।
कर्मचारी संगठनों ने सरकार को स्पष्ट तौर से बता दिया है कि उन्हें बिना गारंटी वाली 'एनपीएस' योजना को खत्म करने और परिभाषित एवं गारंटी वाली 'पुरानी पेंशन योजना' की बहाली से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। इसके बाद नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के बैनर तले एक अक्तूबर को पेंशन शंखनाद महारैली में आयोजित की गई थी। इस रैली में केंद्र एवं राज्यों के लाखों कर्मियों ने शिरकत की। अब कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स के बैनर तले होने 3 नवंबर को रामलीला मैदान में ही तीसरी रैली होने जा रही है। इस रैली में ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट एम्प्लाइज फेडरेशन सहित कई कर्मचारी संगठन हिस्सा लेंगे।
सरकार का फार्मूला कर्मियों को मान्य नहीं
नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) की महाराष्ट्र इकाई के वरिष्ठ पदाधिकारी विनायक चौथे ने कहा कि पुरानी पेंशन को लेकर देशभर के सरकारी कर्मचारी एकजुट हो रहे हैं। इस मामले में विपक्षी दल भी, कर्मचारी संगठनों के पक्ष में खड़े हैं। ऐसे में केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ रहा है। सरकार को ओपीएस पर सियायत में जोखिम का भी अंदाजा है। यही वजह है कि अब एनपीएस में सुधार की बात हो रही है। राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए केंद्र सरकार, अब डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। अगर सरकार, एनपीएस में सुधार कर कर्मियों को शांत करना चाहती है तो उसका कोई फायदा नहीं होगा। ये केवल गुमराह करने का प्रयास है।
सरकारी कर्मियों को ओपीएस के कम कुछ भी मंजूर नहीं है। अगर सरकार पुरानी पेंशन की तर्ज पर एनपीएस में लाभ देना चाहती है तो वह ओपीएस ही क्यों नहीं लागू करती। एनपीएस में कर्मियों का दस प्रतिशत हिस्सा कटता है। इस बात का जवाब कोई नहीं देता कि रिटायरमेंट पर क्या ब्याज सहित यह राशि मिलती है। क्या इस राशि पर डीए बढ़ोतरी का कोई असर होता है। एनपीएस में न तो डीए और न ही पे रिवाइज का लाभ मिलता है। नए वेतन आयोग के गठन का भी एनपीएस पर असर नहीं होगा। ऐसे में एनपीएस के तहत अंतिम सेलरी कभी रिवाइज ही नहीं होगी।
छिपे हुए एजेंडे को आगे बढ़ा रही है सरकार
विनायक चौथे ने कहा कि ओपीएस देने से सरकार को कोई नुकसान नहीं होगा, मगर यहां तो बात छिपे हुए एजेंडे की है। इस एजेंडे में, सारा पैसा पूंजिपतियों के हाथों में जा रहा है। अगर सरकार ने डैमेज कंट्रोल के लिए एनपीएस में सुधार किया तो कर्मचारी संगठन, उसे स्वीकार नहीं करेंगे। ओपीएस में तो 80 साल पार करते ही पेंशन में दस फीसदी इजाफा हो जाता है। अगर कोई 90 साल तक पहुंच रहा है तो उसकी पेंशन बीस प्रतिशत बढ़ जाती है। ओपीएस का आंदोलन अब जोर पकड़ता जा रहा है। 18 दिसंबर को नागपुर में शीतकालीन सत्र के दौरान दस लाख सरकारी कर्मी, मार्च निकालेंगे।
वित्त मंत्रालय ने इस मामले में जो कमेटी गठित की है, उसमें ओपीएस का जिक्र ही नहीं है। उसमें एनपीएस में सुधार की बात कही गई है। नई दिल्ली में 20 सितंबर को हुई राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) स्टाफ साइड की बैठक के एजेंडे में 'ओपीएस' का मुद्दा टॉप पर रहा था। कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते हुए अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी.श्रीकुमार ने कहा था, हमने सरकार के समक्ष एक बार फिर अपनी मांग दोहराई है। एनपीएस को खत्म किया जाए और पुरानी पेंशन योजना' को जल्द से जल्द बहाल करें। अगर सरकार ओपीएस लागू नहीं करती है तो सियासत के मोर्चे पर चोट की जाएगी। केंद्र एवं राज्यों के सरकारी कर्मियों और उनके परिजनों व रिश्तेदारों को मिलाकर वह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में जब यही संख्या वोट में बदलेगी तो केंद्र सरकार को कर्मियों की ताकत का अहसास होगा।
अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा सकते हैं कर्मचारी
बतौर श्रीकुमार, केंद्र सरकार, पुरानी पेंशन लागू नहीं करती है तो 'भारत बंद' जैसे कई कठोर कदम उठाए जाएंगे। पुरानी पेंशन के लिए कर्मचारी संगठन, राष्ट्रव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल कर सकते हैं। इसके लिए 20 और 21 नवंबर को देशभर में स्ट्राइक बैलेट होगा। कर्मचारियों की राय ली जाएगी। अगर बहुमत हड़ताल के पक्ष में होता है तो केंद्र एवं राज्यों में सरकारी कर्मचारी, अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। उस अवस्था में रेल थम जाएंगी तो वहीं केंद्र एवं राज्यों के कर्मचारी 'कलम' छोड़ देंगे।
सी.श्रीकुमार के मुताबिक, पुरानी पेंशन बहाली के लिए केंद्र एवं राज्यों के कर्मचारी एक साथ आ गए हैं। लगभग देश के सभी कर्मचारी संगठन इस मुद्दे पर एकमत हैं। केंद्र और राज्यों के विभिन्न निगमों और स्वायत्तता प्राप्त संगठनों ने भी ओपीएस की लड़ाई में शामिल होने की बात कही है। दस अगस्त और एक अक्तूबर की रैली में देशभर से आए लाखों कर्मियों ने 'ओपीएस' को लेकर हुंकार भरी थी। कर्मचारियों ने दो टूक शब्दों में कहा था कि वे हर सूरत में पुरानी पेंशन बहाल कराकर ही दम लेंगे। सरकार को अपनी जिद्द छोड़नी पड़ेगी।
पेंशन न एक इनाम है न ही अनुग्रह की बात
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बीडी चंद्रचूड, जस्टिस बीडी तुलजापुरकर, जस्टिस ओ. चिन्नप्पा रेड्डी एवं जस्टिस बहारुल इस्लाम शामिल थे, के द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत रिट पिटीशन संख्या 5939 से 5941, जिसको डीएस नाकरा एवं अन्य बनाम भारत गणराज्य के नाम से जाना जाता है, में दिनांक 17 दिसंबर 1981 को दिए गए प्रसिद्ध निर्णय का उल्लेख करना आवश्यक है। इसके पैरा 31 में कहा गया है, चर्चा से तीन बातें सामने आती हैं। एक, पेंशन न तो एक इनाम है और न ही अनुग्रह की बात है जो कि नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर हो। यह 1972 के नियमों के अधीन, एक निहित अधिकार है जो प्रकृति में वैधानिक है, क्योंकि उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के खंड '50' का प्रयोग करते हुए अधिनियमित किया गया है। पेंशन, अनुग्रह राशि का भुगतान नहीं है, बल्कि यह पूर्व सेवा के लिए भुगतान है। यह उन लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक न्याय प्रदान करने वाला एक सामाजिक कल्याणकारी उपाय है, जिन्होंने अपने जीवन के सुनहरे दिनों में, नियोक्ता के इस आश्वासन पर लगातार कड़ी मेहनत की है कि उनके बुढ़ापे में उन्हें ठोकरें खाने के लिए नहीं छोड़ दिया जाएगा।
एनपीएस में रिटायर्ड कर्मियों को मिली इतनी पेंशन
एनपीएस में कर्मियों जो पेंशन मिल रही है, उतनी तो बुढ़ावा पेंशन ही है। एनपीएस स्कीम में शामिल कर्मी, 18 साल बाद रिटायर हो रहे हैं, उन्हें क्या मिला है। एक कर्मी को एनपीएस में 2417 रुपये मासिक पेंशन मिली है, दूसरे को 2506 रुपये और तीसरे कर्मी को 49 सौ रुपये प्रतिमाह की पेंशन मिली है। अगर यही कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में होते तो उन्हें प्रतिमाह क्रमश: 15250 रुपये, 17150 रुपये और 28450 रुपये मिलते। एनपीएस में कर्मियों द्वारा हर माह अपने वेतन का दस प्रतिशत शेयर डालने के बाद भी उन्हें रिटायरमेंट पर मामूली सी पेंशन मिलती है। इस शेयर को 14 या 24 प्रतिशत तक बढ़ाने का कोई फायदा नहीं होगा।
एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार के मुताबिक, एनपीएस में पुरानी पेंशन व्यवस्था की तरह महंगाई राहत का भी कोई प्रावधान नहीं है। जो कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में आते हैं, उन्हें महंगाई राहत के तौर पर आर्थिक फायदा मिलता है। एनपीएस में सामाजिक सुरक्षा की गारंटी भी नहीं रही। 'कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन' के महासचिव रणबीर सिंह ने कहा, ढाई दिन के सांसद को फुल पेंशन और जो 40 साल देश सेवा करें, उन पैरामिलिट्री जवानों की पेंशन बंद कर दी गई। इस साल चार राज्यों में होने वाले विधानसभा व 2024 के आम चुनावों में वोट उसी पार्टी को मिलेगा, जो पैरामिलिट्री जवानों की पेंशन लागू करेगा।