हाईकोर्ट ने दरोगा की तैनाती को निरस्त करने का आदेश किया रद्द
गृह विभाग को याची को सेवा में बहाली का दिया आदेश
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक फैसले में कहा कि सुनवाई का मौका दिए बिना सिविल पुलिस में उप निरीक्षक पद पर नियुक्ति का आदेश निरस्त नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ याची दरोगा की तैनाती को निरस्त करने का आदेश रद्द कर दिया।
हालांकि कोर्ट ने पक्षकार गृह विभाग को यह छूट दी कि याची को कारण बताओ नोटिस जारी करने और उसके जवाब पर गौर करते हुए नया आदेश पारित कर सकता है। इसके लिए कोर्ट ने याची को सेवा में बहाल करने के साथ ही यह आदेश दिया कि अगर उसके खिलाफ जांच शुरू हो तो इसे चार सप्ताह में पूरा किया जाए। न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने यह आदेश दरोगा अरुण कुमार की याचिका पर दिया।
याची ने बीते 14 अगस्त को पारित नियुक्ति निरस्त करने के आदेश को चुनौती दी थी। उसका कहना था कि वर्ष 2012 में जब उसके खिलाफ यह आपराधिक केस दर्ज हुआ था, तब वह नाबालिग था। उसे केस की कार्यवाही का भी पता नहीं था।
याची ने कहा कि दरोगा पद पर उसकी नियुक्ति निरस्त करने से पहले उसे न तो कारण बताओ नोटिस दी गई और न ही सुनवाई का मौका, जिससे वह अपना पक्ष रख सके। वहीं, सरकारी वकील ने दलील दी कि याची को आपराधिक केस लंबित होने की जानकारी थी। उसने पुलिस में नौकरी पाने के लिए जानबूझकर केस लंबित होने के तथ्य को छिपाया । इसकी पुष्टि के बाद तैनाती निरस्त की गई।
कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि यह साफ है कि याची की तैनाती निरस्त करने का आदेश, उसको कारण बताओ नोटिस या सुनवाई का मौका दिए बगैर पारित किया गया। ऐसे में यह आदेश सही नहीं है, जिसे रद्द किया जाता है। इस टिप्पणी व आदेश के साथ कोर्ट ने याचिका मंजूर कर ली।