सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह कानून 16 (2) के तहत दिए दो अहम निष्कर्ष
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अमान्य, शून्य घोषित की गई या शून्य घोषित किए जाने योग्य शादी से पैदा बच्चा भी कानूनी हक रखता है। वह हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत अपने मृत माता-पिता की संपत्ति पर दावा कर सकता है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने शुक्रवार को 2011 की एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा, हमने दो निष्कर्ष तैयार किए हैं। पहला, एक शून्य या अमान्य करार दी गई शादी से पैदा बच्चे को कानूनी रूप से वैध माना जाएगा। दूसरा, हिंदू विवाह अधिनियम 16 (2) के अनुसार, जहाँ एक अमान्य विवाह को रद्द कर दिया गया हो, रद्द किए जाने की डिक्री से पहले पैदा हुआ बच्चा वैध माना जाएगा।
इसी तरह बेटियों को भी बराबर अधिकार प्रदान किया जाता है। पीठ के समक्ष याचिका इस जटिल कानूनी मुद्दे से संबंधित थी कि क्या विवाह के बाहर जन्मे बच्चे भी हिंदू कानूनों के तहत अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार हैं।
सुप्रीम कोर्ट को इस सवाल पर फैसला सुनाना था कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16(3) के तहत ऐसे बच्चों का हिस्सा सिर्फ उनके माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति तक ही सीमित है?
फैसले में उदाहरण भी दिया
पीठ ने कहा, मान : लीजिए चार भाई हैं, सी1, सी2, सीउ और सी4। पारिवारिक संपत्ति में सी2 की मौत से ठीक पहले बंटवारा होता है। चारों को बराबर-बराबर एक चौथाई संपत्ति मिलेगी। सी2 की एक विधवा, वैध शादी से एक बेटी और अवैध घोषित शादी से एक बेटा है। सी2 के एक चौथाई हिस्से के तीन बराबर हिस्से एक बटा बारह किए जाएंगे। एक सी2 का, एक विधवा का और एक बेटी का अब सीट के हिस्से वाले एक बटा बारहवें हिस्से के तीन बराबर भाग होंगे और इसमें विधवा, बेटी और अमान्य शादी से जन्मे बच्चे को हिस्सा मिलेगा।
यह है शून्य घोषित विवाह
हिंदू कानून के तहत शून्य घोषित विवाह में पुरुष और महिला के पास पति-पत्नी का दर्जा नहीं होता है। हालांकि, शून्य घोषित किए जाने योग्य विवाह में पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त उन्हें होता है। शून्य विवाह में, शादी को रद्द करने के लिए किसी डिक्री की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि, शून्य किए जाने योग्य विवाह में रद्द करने की डिक्री जरूरी होती है।