OPS : रामलीला मैदान में पुरानी पेंशन की मांग को लेकर सरकारी कर्मियों ने भरी हुंकार, बोले 'पुरानी पेंशन' तो देनी ही पड़ेगी
केंद्र एवं राज्यों के कर्मचारी संगठनों ने पुरानी पेंशन पर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। गुरुवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में देशभर से आए लाखों कर्मियों ने 'ओपीएस' को लेकर हुंकार भरी है। कर्मचारियों ने दो टूक शब्दों में कहा, हर सूरत में केंद्र और राज्य सरकारों को पुरानी पेंशन बहाल करनी होगी। इसके लिए कर्मचारी संगठन अपना आंदोलन जारी रखेंगे। सरकार को अपनी जिद्द छोड़नी पड़ेगी।
कर्मचारियों ने कहा, वे सरकार को वह फार्मला बताने को तैयार हैं, जिसमें सरकार को ओपीएस लागू करने से कोई नुकसान नहीं होगा। अगर इसके बाद भी सरकार, पुरानी पेंशन लागू नहीं करती है तो 'भारत बंद' जैसे कई कठोर कदम उठाए जाएंगे। ओपीएस के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति के राष्ट्रीय संयोजक एवं स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद 'जेसीएम' के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा, लोकसभा चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू नहीं होती है तो भाजपा को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। कर्मियों, पेंशनरों और उनके रिश्तेदारों को मिलाकर यह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। चुनाव में बड़ा उलटफेर करने के लिए यह संख्या निर्णायक है।
कर्मियों को मंजूर नहीं है 'एनपीएस' में सुधार
बता दें कि देश में पुरानी पेंशन लागू कराने के लिए पहली बार केंद्र एवं राज्य सरकारों के कर्मचारी एक साथ आए हैं। केंद्र के सभी मंत्रालय/विभाग, रक्षा कर्मी (सिविल), रेलवे, बैंक, डाक, प्राइमरी, सेकेंडरी, कालेज एवं यूनिवर्सिटी टीचर, दूसरे विभागों एवं विभिन्न निगमों और स्वायत्तशासी संगठनों के कर्मचारी रामलीला मैदान में पहुंचे। दर्जनों नेताओं ने मंच से अपनी बात कही। शिवगोपाल मिश्रा ने बताया, ओपीएस को लेकर आंदोलन चलता रहेगा। वित्त मंत्रालय ने जो कमेटी बनाई है, उसमें 'ओपीएस' का जिक्र ही नहीं है। उसमें तो एनपीएस में सुधार की बात कही गई है। इसका मतलब है कि केंद्र सरकार, ओपीएस लागू करने के मूड में नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा एनपीएस में चाहे जो भी सुधार किया जाए, कर्मियों को वह मंजूर नहीं है। कर्मियों का केवल एक ही मकसद है, बिना गारंटी वाली 'एनपीएस' योजना को खत्म किया जाए और परिभाषित एवं गारंटी वाली 'पुरानी पेंशन योजना' को बहाल किया जाए।
शिवगोपाल मिश्रा के मुताबिक, यह पहली बार हुआ है, जब किसी एक ही मांग पर केंद्र और राज्यों के लाखों कर्मचारी एकत्रित हुए हैं। जनवरी से लेकर अभी तक विभिन्न राज्यों में जिला स्तर पर ओपीएस की मांग के लिए विरोध प्रदर्शन, साइकिल एवं पैदल यात्रा और दूसरे तरीके से आवाज उठाई जा रही है। देश में ऐसा कोई राज्य नहीं बचा है, जहां पर ओपीएस को लेकर आंदोलन न चल रहा हो। खास बात ये है कि राज्यों में शिक्षकों का एक बड़ा वर्ग रहता है, इस बार वही वर्ग सबसे ज्यादा सक्रिय हो चुका है। रेल कर्मचारी, रक्षा विभाग के सिविल कर्मी, बैंक, डाक एवं दूसरे विभागों के कार्मिक, ओपीएस लागू कराने के लिए जी-जान से जुटे हैं। निगम एवं स्वायत्तशासी संगठन भी साथ आ गए हैं। विभिन्न राज्यों को मिलाकर तीन दर्जन से अधिक कर्मचारी संगठन, रामलीला मैदान में पहुंचे हैं। कर्मचारी नेताओं ने कहा, अपने जीवन के चालीस वर्ष सरकार को देने वाले लोगों को सरकार, उनके बुढ़ापे में ठोकरें खिलाने पर आमादा है।
केंद्र सरकार ने नेशनल पेंशन स्कीम में बदलाव के लिए वित्त सचिव की अध्यक्षता में चार सदस्यों की जिस कमेटी का गठन किया था, उसने 9 जून को स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद 'जेसीएम' के पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी। इसमें केंद्र सरकार के बड़े कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने कमेटी को स्पष्ट तौर पर बता दिया था कि उन्हें पुरानी पेंशन के अलावा और कुछ भी मंजूर नहीं है। इस समस्या को हल करने का एकमात्र तरीका यही है कि बिना गारंटी वाली 'एनपीएस' योजना को खत्म किया जाए और परिभाषित एवं गारंटी वाली 'पुरानी पेंशन योजना' को बहाल किया जाए। समिति के अध्यक्ष ने आश्वासन दिया है कि कर्मचारी पक्ष द्वारा अपने ज्ञापन में दिए गए सभी बिंदुओं पर ध्यान दिया जाएगा। इसके अलावा चर्चा के दौरान जो भी प्वाइंट उठे हैं, उन पर गौर होगा। जो भी फाइनल रिपोर्ट तैयार होगी, उसमें कर्मचारी पक्ष द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया जाएगा।
शिव गोपाल मिश्रा ने बताया, एनपीएस में कर्मियों जो पेंशन मिल रही है, उतनी तो बुढ़ावा पेंशन ही है। कर्मियों ने कहा है कि देश में सरकारी कर्मियों, पेन्शनरों, उनके परिवारों और रिश्तेदारों को मिलाकर वह संख्या दस करोड़ के पार पहुंच जाती है। अगर ओपीएस लागू नहीं होता है तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को राजनीतिक नुकसान झेलना होगा। कांग्रेस पार्टी ने ओपीएस को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल किया है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की जीत में ओपीएस की बड़ी भूमिका रही है। एक जनवरी 2004 से सरकारी सेवा में आए कर्मियों को पुरानी पेंशन व्यवस्था से बाहर कर उन्हें एनपीएस में शामिल कर दिया गया। एनपीएस स्कीम में शामिल कर्मी, 18 साल बाद रिटायर हो रहे हैं, उन्हें क्या मिला है। एक कर्मी को एनपीएस में 2417 रुपये मासिक पेंशन मिली है, दूसरे को 2506 रुपये और तीसरे कर्मी को 49 सौ रुपये प्रतिमाह की पेंशन मिली है। अगर यही कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में होते तो उन्हें प्रतिमाह क्रमश: 15250 रुपये, 17150 रुपये और 28450 रुपये मिलते। एनपीएस में कर्मियों द्वारा हर माह अपने वेतन का दस प्रतिशत शेयर डालने के बाद भी उन्हें रिटायरमेंट पर मामूली सी पेंशन मिलती है। इस शेयर को 14 या 24 प्रतिशत तक बढ़ाने का कोई फायदा नहीं होगा।
एआईडीईएफ के महासचिव सी.श्रीकुमार के मुताबिक, एनपीएस में पुरानी पेंशन व्यवस्था की तरह महंगाई राहत का भी कोई प्रावधान नहीं है। जो कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में आते हैं, उन्हें महंगाई राहत के तौर पर आर्थिक फायदा मिलता है। एनपीएस में सामाजिक सुरक्षा की गारंटी भी नहीं रही। रिटायरमेंट के बाद सरकारी कर्मियों को जानबूझकर कष्टों में धकेला जा रहा है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बीडी चंद्रचूड, जस्टिस बीडी तुलजापुरकर, जस्टिस ओ. चिन्नप्पा रेड्डी एवं जस्टिस बहारुल इस्लाम शामिल थे, के द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत रिट पिटीशन संख्या 5939 से 5941, जिसको डीएस नाकरा एवं अन्य बनाम भारत गणराज्य के नाम से जाना जाता है, में दिनांक 17 दिसंबर 1981 को दिए गए प्रसिद्ध निर्णय का उल्लेख करना आवश्यक है। इसके पैरा 31 में कहा गया है, चर्चा से तीन बातें सामने आती हैं। एक, पेंशन न तो एक इनाम है और न ही अनुग्रह की बात है जो कि नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर हो। यह 1972 के नियमों के अधीन, एक निहित अधिकार है जो प्रकृति में वैधानिक है, क्योंकि उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के खंड '50' का प्रयोग करते हुए अधिनियमित किया गया है। पेंशन, अनुग्रह राशि का भुगतान नहीं है, बल्कि यह पूर्व सेवा के लिए भुगतान है। यह उन लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक न्याय प्रदान करने वाला एक सामाजिक कल्याणकारी उपाय है, जिन्होंने अपने जीवन के सुनहरे दिनों में, नियोक्ता के इस आश्वासन पर लगातार कड़ी मेहनत की है कि उनके बुढ़ापे में उन्हें ठोकरें खाने के लिए नहीं छोड़ दिया जाएगा।