हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित विवाहित बेटी को माना अनुकंपा नियुक्ति का हकदारलखनऊ बेंच ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में मृतक आश्रित विवाहित बेटी को भी अनुकंपा नियुक्ति का हकदार माना है। इसके साथ ही कोऑपरेटिव सोसायटी इंप्लाइज सर्विस रेगुलेशन में से अविवाहित शब्द को हटा दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में मृतक आश्रित विवाहित बेटी को भी अनुकंपा नियुक्ति का हकदार माना है। इसके साथ न्यायालय ने यूपी को-ऑपरेटिव सोसायटी इंप्लाइज सर्विस रेगुलेशन में पुत्री के साथ लगे ‘अविवाहित’ शब्द को समाप्त कर दिया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने नीलम देवी की याचिका पर पारित किया।
याची के पिता यूपी सहकारी ग्रामीण विकास बैंक में सहायक शाखा लेखाकार के पद पर कार्यरत थे, जिनकी सेवाकाल में ही मौत हो गई। उनकी जगह पर मृतक आश्रित के तौर पर याची ने अनुकंपा नियुक्ति की प्रार्थना की, जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि को-ऑपरेटिव सोसायटी इम्प्लॉइज सर्विस रेग्युलेशन्स के तहत सिर्फ अविवाहित पुत्री ही मृतक आश्रित के तौर पर अनुकंपा नियुक्ति की हकदार है। इस दौरान यूपी को-ऑपरेटिव इंस्टीट्यूशनल सर्विस बोर्ड ने भी प्रस्ताव भेजकर इस प्रावधान में संशोधन की सिफारिश की, जिसे राज्य सरकार ने नामंजूर कर दिया।
न्यायालय ने सुनवाई के बाद पारित निर्णय में कहा कि वर्तमान मामले से स्पष्ट है कि राज्य लैंगिक न्याय के प्रति अब भी कितना उदासीन है, जबकि इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट आदेश दे रखे हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि साल 2015 में ही हाईकोर्ट ने प्रदेश के डाइंग इन हार्नेस रूल्स से ‘अविवाहित’ शब्द को हटा दिया था, बाद में राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में इसे चुनौती भी दी, लेकिन शीर्ष अदालत ने भी साल 2019 में सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद वर्ष 2021 में सरकार ने अधिसूचना जारी कर ‘परिवार’ की परिभाषा में पुत्री को बिना उसकी वैवाहिक स्थिति के शामिल किया। कोर्ट ने यह टिप्पणियां करते हुए याचिका को मंजूर कर लिया और ‘अविवाहित’ शब्द को संबंधित सर्विस रेग्युलेशन्स से समाप्त कर दिया।