हाईकोर्ट सख्त: बिजली कर्मचारियों की हड़ताल गैरकानूनी और असांविधानिक
कर्मचारी नेताओं के एक माह के वेतन और पेंशन पर रोक
हड़ताल मौलिक अधिकार नहीं
बार-बार कहने के बावजूद कर्मचारी नेता यह आश्वासन देने में विफल रहे कि वह भविष्य में हड़ताल नहीं करेंगे। इसको देखते हुए चेतावनी स्वरूप उनका एक महीने का वेतन या पेंशन रोकी जा रही है। किसी को भी हड़ताल पर जाने का मौलिक अधिकार नहीं है। –हाईकोर्ट
प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिजली कर्मचारियों की हड़ताल को गैरकानूनी, असांविधानिक बताते हुए कर्मचारी नेताओं के एक महीने के वेतन और पेंशन के भुगतान पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि इस तरह का कृत्य दोबारा होता है, तो वह कानूनों के अनुसार कड़ी कार्रवाई करने के लिए बाध्य होगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि हड़ताल आमजन की सुविधाओं में बाधा नहीं हो सकती है। अस्पतालों, बैंकों जैसे अहम संस्थानों के कामकाज को बाधित नहीं किया जा सकता। हालांकि कोर्ट ने कर्मचारी नेताओं और सरकार के बीच होने वाली वार्ता पर किसी तरह का हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया।
अदालत ने कहा कि दोनों के बीच वार्ता का मार्ग खुला रहेगा। कोर्ट अब मामले में 24 अप्रैल को सुनवाई करेगा। यह आदेश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायाधीश एसडी सिंह की खंडपीठ ने स्वतः संज्ञान ली गई जनहित याचिका में विभु राय की अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है।
रोका वेतन नहीं होगा जब्त
कोर्ट ने केवल उन्हीं हड़ताली कर्मचारी नेताओं की तनख्वाह, पेंशन रोकने का आदेश दिया है, जिन्हें नोटिस जारी हुआ है। रोका वेतन या पेंशन अभी जब्त नहीं किए जाएंगे। वह कोर्ट के आगे की सुनवाई के बाद जारी होने वाले आदेश पर निर्भर होगा।
सात हजार करोड़ से ज्यादा नुकसान
कोर्ट ने अनुमानित क्षति का हवाला देते हुए कहा, उत्पादन, पारेषण व वितरण में 2,000 करोड़, उपभोक्ताओं को 5,000 करोड़ रुपये और व्यापारियों, अस्पतालों, उद्योगों, बैंकों, स्कूलों व संस्थानों को 30 लाख रुपये का नुकसान हुआ।
यूपी के हड़ताली बिजली कर्मचारियों को हाईकोर्ट से तगड़ा झटका, एक माह का वेतन-पेंशन रोका, आगे हड़ताल भी नहीं कर सकेंगेहाईकोर्ट ने 72 घंटे की हड़ताल करने वाले विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के 28 पदाधिकारियों का एक माह का वेतन/पेंशन रोकने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी चेताया कि भविष्य में हड़ताल नहीं होगी।
यूपी में अपनी मांगों को लेकर हड़ताल करने वाले बिजली कर्मचारियों को हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने 72 घंटे की हड़ताल करने वाले विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के 28 पदाधिकारियों का एक माह का वेतन/पेंशन रोकने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह उन लोगों को एक प्रकार से चेतावनी देने वाली कार्रवाई है, जो कानून के राज को हतोत्साहित करना चाहते हैं। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि भविष्य में इस प्रकार की हड़ताल न की जाए और न्यायालय द्वारा जताई गई चिंता के प्रति कर्मचारी यूनियन भविष्य में विवेकपूर्ण रहे।
बिजली कर्मचारियों की 72 घंटे की हड़ताल से आम लोगों को हुई परेशानी को लेकर हाईकोर्ट के अधिवक्ता विभु राय ने कोर्ट के समक्ष अर्जी दाखिल कर यह मामला उठाया था। मामले की सुनवाई कर रही कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति एसडी सिंह की खंडपीठ ने कहा कि इससे पहले कि हम दोषी कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय करके नुकसान की वसूली का आदेश करें, नुकसान का सही आकलन होना जरूरी है।
कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी देने को कहा है, जहां नुकसान हुआ है। साथ ही उन सभी कर्मचारी यूनियन व कर्मचारियों की सूची देने का निर्देश दिया है, जिन्होंने संयुक्त कर्मचारी संघर्ष समिति को हड़ताल करने में सहयोग दिया ताकि हड़ताल से हुए नुकसान के लिए उन सभी को जिम्मेदार ठहराया जा सके।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि उनका यह आदेश कर्मचारी यूनियन पर किसी मुद्दे पर चर्चा, विचार-विमर्श या बैठक करने पर रोक नहीं लगाता है। न ही सरकार और उसके कर्मचारियों के बीच वार्ता पर किसी प्रकार की रोक होगी।
न्यायालय इस मामले में दोनों पक्षों का हलफनामा दाखिल होने और कर्मचारी नेताओं की परेशानियों और असुविधाओं पर विचार करने के बाद अंतिम आदेश करेगी। इससे पूर्व हाईकोर्ट ने दिसंबर 2022 में बिजली कर्मचारियों की हड़ताल पर स्वत संज्ञान लेते हुए आदेश किए थे।
इसके साथ ही हड़ताल न करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने नोटिस जारी कर कर्मचारी मोर्चा के पदाधिकारियों को तलब भी किया था लेकिन आदेश के अनुपालन में कोई भी उपस्थित नहीं हुआ और न ही कोई हलफनामा दाखिल किया गया। इस पर न्यायालय ने सभी पदाधिकारियों को जमानती वारंट जारी कर दिया था।
कोर्ट ने कहा कि प्रथमदृष्टया बिजली कर्मचारियों ने राज्य सरकार द्वारा हड़ताल पर रोक लगाए जाने और इस न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए हड़ताल की है। कोर्ट द्वारा 16 दिसंबर 2022 को नोटिस जारी किए जाने के बावजूद कोई भी कर्मचारी नेता न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ। इस प्रकार से न्यायालय के आदेश का अपमान किया गया। यहां तक कि न्यायालय में हाजिर होने के बावजूद वह यह आश्वासन देने को तैयार नहीं हैं कि भविष्य में हड़ताल नहीं की जाएगी।
कोर्ट ने बिजली कर्मचारियों को यह भी चेतावनी दी है कि भविष्य में इस प्रकार का कार्य न करें, जो न्यायालय को हड़ताल करने वाले सभी कर्मचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के लिए विवश करें। कोर्ट ने कहा कि यदि दोबारा ऐसी कोशिश की जाती है तो उसकी परिणति कानूनी परिणाम के रूप में होगी। कोर्ट ने कहा है कि निर्दोष जनता को परेशानी नहीं होनी चाहिए। अस्पताल, बैंक जैसी आवश्यक सेवाएं बाधित न की जाएं।
हाईकोर्ट ने नहीं मानी कर्मचारी नेताओं की दलील
कोर्ट ने विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के नेताओं की इस दलील को नहीं माना कि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया इसलिए मजबूरी में उन्हें हड़ताल करनी पड़ी। कोर्ट ने कहा कि जीवन में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां काम करने वाले कर्मचारी हड़ताल के बारे में सोच भी नहीं सकते क्योंकि यह आवश्यक सेवाओं को बाधित कर देगा।
मांगों को बातचीत, प्रदर्शन या किसी अन्य रास्ते से पूरा किया जा सकता है। निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए आम जनता का जीवन पंगु बना देने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। कोर्ट अब इस मामले में 24 अप्रैल को सुनवाई करेगी।