Menstrual Paid Leave: सुप्रीम कोर्ट ने की कामकाजी महिलाओं को पीरियड्स लीव देने की याचिका पर विचार से किया इंकार, महिला और बाल विकास मंत्रालय को ज्ञापन देने को कहा
Supreme Court disposed of the plea seeking state govts to frame rules for menstrual leave for female students and working-class women at their respective educational institutions and workplaces; asked the petitioner to give representation to the Centre on the plea.
Menstrual Pain Leave महिला कर्मचारियों को हर महीने मासिक धर्म से जुड़ी तकलीफों के लिए छुट्टी देने का नियम बनाने पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है। SC ने कहा कि आप महिला और बाल विकास मंत्रालय को ज्ञापन दें।
नई दिल्ली। Menstrual Pain Leave: कामकाजी महिलाओं और छात्राओं को मासिक धर्म के दौरान पेड लीव देने वाली याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया।
बता दें कि इस याचिका में सभी राज्यों को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए उनके संबंधित कार्य स्थलों पर मासिक धर्म के दर्द की छुट्टी के लिए नियम बनाएं।
वहीं, CJI ने कहा कि ऐसी संभावना भी हो सकती है कि छुट्टी की बाध्यता होने पर लोग महिलाओं को नौकरी देने से परहेज करें।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में दें ज्ञापन
यह देखते हुए कि यह मुद्दा सरकार के नीतिगत दायरे में आता है, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि निर्णय लेने के लिए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को एक प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है।
दिल्ली निवासी शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 के अनुपालन के लिए केंद्र और सभी राज्यों को निर्देश देने की मांग की गई है।
अधिनियम की धारा 14 निरीक्षकों की नियुक्ति से संबंधित है और कहती है कि उपयुक्त सरकार ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है और क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं को परिभाषित कर सकती है, जिसके भीतर वे इस कानून के तहत अपने कार्यों का प्रयोग करेंगे।
कई देश पहले से ही दे रहे पीरियड्स लीव
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विशाल तिवारी ने पिछले हफ्ते याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग भी की थी।याचिका में कहा गया था कि यूनाइटेड किंगडम, चीन, वेल्स, जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन और जाम्बिया जैसे देशों में पहले से ही पीरियड्स लीव दी जा रही है।
याचिका में कहा गया था कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं और छात्राओं को कई तरह की शारीरिक और मानसिक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। इस दौरान कई तरह की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में उनको पीरियड्स लीव दिए जाने के संबंध में आदेश पारित करना चाहिए। याचिका में 1961 के अधिनियम का भी हवाला देते हुए कहा गया था कि यह महिलाओं के सामने आने वाली करीब-करीब सभी समस्याओं के लिए प्रावधान करता है।
अधिनियम होने के बाद भी नही होता पालन
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया था कि मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत कानून के ये प्रावधान कामकाजी महिलाओं के मातृत्व और मातृत्व को पहचानने और सम्मान देने के लिए संसद या देश के लोगों द्वारा उठाए गए सबसे बड़े कदमों में से एक हैं। हालांकि, फिर भी कानून होने के बाद भी इनका सख्ती से पालन नहीं होता है।
बिहार में मिलती है महिलाओं को पीरियड्स लीव
बता दें कि बिहार भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जो 1992 से महिलाओं को दो दिन का विशेष मासिक धर्म दर्द अवकाश प्रदान कर रहा है। 1912 में, कोच्ची (वर्तमान एर्नाकुलम जिला) की तत्कालीन रियासत में स्थित त्रिपुनिथुरा में सरकारी गर्ल्स स्कूल ने छात्रों को उनकी वार्षिक परीक्षा के समय 'पीरियड लीव' लेने की अनुमति दी थी।