सेवानिवृत्ति की उम्र 70 साल करने पर डॉक्टर राजी नहीं, डॉक्टरों की कमी के लिए भर्ती में देरी व प्रोन्नति प्रक्रिया में लापरवाही को बताया जिम्मेदार
लखनऊ। प्रदेश के सरकारी अस्पताल में कार्यरत चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की उम्र 70 साल करने पर चिकित्सक राजी नहीं हैं। वह चिकित्सकों की कमी के लिए समय पर भर्ती नहीं होना और पदोन्नित में लापरवाही को जिम्मेदार बता रहे हैं। पूरे मामले में प्रांतीय चिकित्सा सेवा एसोसिएशन ने महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं को पत्र भेजकर सुझाव दिया है।
गौरतलब है कि शासन की ओर से महानिदेशक को पत्र भेजकर चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति आयु 70 साल करने का प्रस्ताव दिया गया था। इस प्रस्ताव पर उनसे सुझाव भी मांगे गए थे। महानिदेशक ने प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा (पीएमएचएस) संवर्ग के चिकित्सकों की अधिवर्षता आयु बढ़ाने के संबंध में प्रांतीय चिकित्सा सेवा एसोसिएशन से भी सुझाव मांगा राष्ट्रीय था।
एसोसिएशन ने महानिदेशक को भेजे सुझाव में स्पष्ट किया है कि चिकित्सकों की कमी का मूल कारण उच्चतर स्तरों पर प्रोन्न्त ना होना एवं नए चिकित्सकों की भर्ती का नहीं होना है। ऐसे में सेवानिवृत्ति आयु 60 वर्ष से 65 वर्ष एवं बाद में 70 वर्ष किए जाने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने सेवा नियमावली की विसंगति को दूर करने करने का सुझाव दिया है। इसी तरह प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग में चिकित्सकों की वरिष्ठता के अनुसार लेवल बार स्थिति भी बताई है।
यूपी : डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति उम्र 65 / 70 साल करने की तैयारी
लखनऊ : सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए सरकार इनकी सेवानिवृत्ति आयु 62 से बढ़ा कर 65 वर्ष कर सकती है। वहीं डीएनबी प्रशिक्षण में गाइड की भूमिका वाले विशेषज्ञ चिकित्सकों को भी तीन साल से पहले ट्रांसफर न करने पर विचार हो रहा है। स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव ने महानिदेशक चिकित्सा से इस संबंध में तीन दिनों में आख्या मांगी है।
डीजी, निदेशक, एडी के पद बढ़ाने का सुझाव
लखनऊ : मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षकों की तर्ज पर स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति आयु भी 65 वर्ष हो सकती है। इस संबंध में सीएम योगी को डॉक्टरों की कमी सहित कई बिंदुओं परप्रस्ताव सौंपा था। इसे सीएम कार्यालय ने परीक्षण के लिए स्वास्थ्य विभाग को भेज दिया।
इसमें कहा गया है कि काफी संख्या में विशेषज्ञ चिकित्सकों के रिटायरमेंट और तबादलों के कारण चिकित्सा सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। यह भी सुझाया गया है कि सामान्य, विशेषज्ञ और सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों की आवश्यकताओं, स्तरों व नियुक्ति स्थान को एक रूप में नहीं रखा जाना चाहिए। विभाग में फिलहाल जो भी पद हैं वे 2007 से पहले के सृजित हैं। तब से जनसंख्या काफी बढ़ चुकी है।
एक महानिदेशक के पास कई स्वास्थ्य कार्यक्रमों की देखभाल का जिम्मा है। निदेशक व अपर निदेशक स्तर के पद भी सीमित संख्या में हैं। वह भी काफी समय तक रिक्त रह जाते हैं। दरअसल महानिदेशक, निदेशक, अपर निदेशक और वरिष्ठ एल-4 के चिकित्सकों के वेतनमान समान हैं। ऐसे में इनके पदनाम बदलते हुए इन पदों की संख्या बढ़ाने का भी सुझाव दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव डा. मन्नान अख्तर ने सीएम कार्यालय से प्राप्त प्रस्तावित सुझावों को महानिदेशक को भेजते हुए तीन दिन में आख्या देने को कहा है।
रिटायर डॉक्टरों का नियोजन भी काफी कम
रिटायर डॉक्टर को फिर रखे जाने की व्यवस्था तो है मगर इनकी संख्या स्वीकृत पदों की तुलना में काफी कम है। यह डॉक्टर भी कई महीनों में मिल पाते हैं। डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया सहित अन्य संचारी रोग फैलने पर मरीजों की संख्या अस्पतालों में बहुत बढ़ जाती है और डॉक्टरों की कमी रहती है। चिकित्सा शिक्षा विभाग की तर्ज पर 65 वर्ष सविकल्प और फिर 70 वर्ष करने का सुझाव दिया गया है।