निकाय चुनाव में आरक्षण : हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की एसएलपी
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स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के निर्णय के खिलाफ प्रदेश सरकार ने बृहस्पतिवार को सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुज्ञा याचिका दायर की है। एसएलपी में सरकार की ओर से उत्तर प्रदेश राज्य स्थानीय निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने की मंजूरी देने का आग्रह किया जाएगा।
निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के लिए सरकार ने उत्तर प्रदेश राज्य स्थानीय निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दिया है। आयोग का गठन करने के बाद अब सरकार ने एसएलपी दायर की है। एसएलपी में सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने, आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही चुनाव कराने की मंजूरी देने का आग्रह किया है। बुधवार को दिनभर नगर विकास विभाग और विधि विभाग के अधिकारी लखनऊ से दिल्ली तक एसएलपी दायर करने की तैयारी में जुटे रहे।
यह है तीन रास्ते
उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंगनाथ पांडेय का मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय सरकार को आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण का निर्धारण कर चुनाव कराने की अनुमति दे सकता है। इसके लिए समय सीमा भी निर्धारित कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय से राहत नहीं मिलने पर केंद्र सरकार लोकसभा में इससे संबंधित कोई बिल लाकर ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने का रास्ता निकाल सकती है। लेकिन उसके लिए सभी राज्यों की सहमति लेनी होगी। यह रास्ता मुश्किल है और इसमें समय भी अधिक लगेगा।
उच्च न्यायालय का फैसला सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की लाइन पर ही होने के कारण सुप्रीम कोर्ट एसएलपी को खारिज भी कर सकता है। क्योंकि यह भले ही तत्कालिक रूप से यूपी से जुड़ा है लेकिन मामला पूरे देश से संबंधित है।
ये हो सकता है राजनीतिक निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय और लोकसभा से कोई राहत नहीं मिलने की स्थिति में सत्तारूढ़ भाजपा निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को सामान्य की 35 फीसदी सीटों पर टिकट देकर पिछड़े वर्ग को संदेश देने का प्रयास करेगी कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी भाजपा सरकार ने पिछड़ों को निर्धारित से ज्यादा आरक्षण दिया है
यूपी : निकाय चुनाव कम से कम तीन महीने के लिए टलने की आशंका, अप्रैल या मई में होने की संभावना
ताजा घटनाक्रम के बाद यह तो साफ हो गया है कि निकाय चुनाव कम से कम तीन महीने के लिए टल जाएगा। राज्य सरकार को अब हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर पहले आयोग का गठन करना होगा। इसकी देखरेख में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की प्रक्रिया तय करनी होगी।
यूपी में फरवरी में ग्लोबल इंवेस्टर समिट है और इसी महीने से यूपी बोर्ड के साथ विभिन्न बोर्ड की परीक्षाएं शुरू हो रही हैं। इससे यह माना जा रहा है कि अप्रैल या मई में अब निकाय चुनाव होंगे। अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट जाती है और वहां सर्वोच्च न्यायालय सरकार के पक्ष में निर्णय दे दे तो तब निकाय चुनाव जनवरी में हो सकता है।
अक्तूबर में होनी थी अधिसूचना
यूपी में निकाय चुनाव की अधिसूचना अक्तूबर में हो जानी चाहिए थी। वर्ष 2017 में 27 अक्तूबर को निकाय चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई थी। उस समय तीन चरणों में चुनाव हुआ था और मतगणना 1 दिसंबर 2017 को हुई थी। इस बार निकाय चुनाव में विभागीय स्तर पर देरी हुई। वार्डों और सीटों के आरक्षण दिसंबर में हुआ।
पांच दिसंबर को मेयर और अध्यक्ष की सीटों का प्रस्तावित आरक्षण जारी किया गया। इस पर सात दिनों में आपत्तियां मांगी गई थीं।
नगर विकास विभाग यह मान कर चल रहा था कि 14 या 15 दिसंबर तक वह राज्य निर्वाचन आयोग को कार्यक्रम सौंप देगा, लेकिन इस बीच मामला हाईकोर्ट में जाकर फंस गया।
कहां हुई अधिकारियों से चूक
निकाय चुनाव में सीटों के आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2010 में फैसला दिया था। इसमें यह साफ कर दिया गया था कि आयोग का गठन करते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए वार्डों और सीटों का आरक्षण किया जाएगा। इसके बाद भी इसकी अनदेखी की गई। आरक्षण को लेकर हर बार स्थानीय निकाय निदेशालय की अहम भूमिका रहती थी, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस बार उसकी मदद नहीं ली गई। अधिकतर नए अधिकारी लगे हुए थे, इसीलिए कई चूक हो गई।
कई अफसरों पर गिर सकती है गाज
सूत्रों का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद उच्च स्तर पर नाराजगी जताई गई है। बताया जा रहा है कि इसके लिए जल्द ही जिम्मेदारी तय की जाएगी। इसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी। सूत्रों का कहना है कि इसमें नगर विकास विभाग के कुछ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है, लेकिन उच्च स्तर पर मामले की लीपापोती की जा रही है।
बिना आरक्षण तुरंत कराएं चुनाव कोर्ट, नगर निकाय हाईकोर्ट ने ड्राफ्ट नोटिफिकेशन रद्द किया, यूपी सरकार फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी
● पिछले कई नगर निकाय / पंचायत चुनाव (विभिन्न सरकारों) में ओबीसी रैपिड सर्वे के आधार पर आरक्षण देते हुए संपन्न कराए जा चुके हैं ।
लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार को बड़ा झटका देते हुए निकाय चुनावों के लिए जारी 5 दिसंबर 2022 के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है। इस ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के जरिए सरकार ने एससी, एसटी व ओबीसी के लिए आरक्षण प्रस्तावित किया था।
न्यायालय ने अपने 87 पेज के निर्णय में यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित ट्रिपल टेस्ट के बगैर ओबीसी आरक्षण नहीं लागू किया जाएगा। कोर्ट ने एससी/एसटी वर्ग को छोड़कर बाकी सभी सीटों को सामान्य सीटों के तौर पर अधिसूचित करने का भी आदेश दिया है। हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि महिला आरक्षण संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार दिए जाएं।
न्यायालय ने सरकार को निकाय चुनावों की अधिसूचना तत्काल जारी करने का आदेश दिया है। यह भी टिप्पणी की है कि यह संवैधानिक अधिदेश है कि वर्तमान निकायों के कार्यकाल समाप्त होने तक चुनाव करा लिए जाएं। यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने वैभव पांडेय समेत कुल 93 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया। न्यायालय ने 12 दिसंबर 2022 के उस शासनादेश को भी निरस्त कर दिया है जिसमें निकायों का कार्यकाल समाप्त होने पर इनके बैंक अकाउंट प्रशासकीय अधिकारियों के नियंत्रण में दे दिए गए थे। न्यायालय ने कहा कि के कृष्ण मूर्ति व विकास किशनराव गवली मामलों में दिए ट्रिपल टेस्ट फार्मूले को अपनाए बगैर ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
क्या है ट्रिपल टेस्ट
शीर्ष अदालत के निर्णयों के तहत ट्रिपल टेस्ट में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण दिए जाने के लिए एक समर्पित आयोग का गठन किया जाता है जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति व प्रभाव की जांच करता है, तत्पश्चात ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को प्रस्तावित किया जाता है तथा यह सुनिश्चित करना होता है कि एससी, एसटी व ओबीसी आरक्षण 50 से अधिक न होने पाए।
वे तीन निर्णय जिनका अनुपालन न करना पड़ा सरकार को भारी
2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने के. कृष्णमूर्ति व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य मामले में पहली बार निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण के संदर्भ में ट्रिपल टेस्ट लागू किए जाने की बात कही। वहीं, विकास किशन राव गवाली मामले में महाराष्ट्र में होने वाले निकाय चुनावों में बिना ट्रिपल टेस्ट फार्मूला लागू किए ओबीसी आरक्षण किो चुनौती दी गई थी। इस मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों के चुनाव परिणाम को ही रद्द कर दिया था। इसी प्रकार सुरेश महाजन मामला मध्य प्रदेश निकाय चुनावों से सम्बंधित है। इसमें भी कोर्ट ने एससी-एसटी सीटों के अतिरिक्त सीटों को सामान्य अधिसूचित कर चुनाव कराने के आदेश दिए थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने यूपी के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर निर्णय दे दिया है। हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को रद्द करते हुए फौरन चुनाव कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार की दलीलों को नहीं माना।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ट्रिपल टेस्ट के बगैर ओबीसी को कोई आरक्षण न दिया जाए। ऐसे में बगैर ओबीसी को आरक्षण दिए स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं। कोर्ट ने राज्य सरकार को ट्रिपल टेस्ट के लिए आयोग बनाए जाने का आदेश दिया। कोर्ट ने चुनाव के संबंध में सरकार द्वारा जारी गत 5 दिसंबर के अनंतिम ड्राफ्ट आदेश को भी निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने मंगलवार को यह निर्णय ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाया।
कोर्ट में सुनवाई चलते रहने के कारण राज्य निर्वाचन आयोग के अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी गई थी। मामले में याची पक्ष ने कहा था कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय किए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।
जिस पर राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा है कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। सरकार ने ये भी कहा था कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है? इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।
कैसे होता है रैपिड सर्वे
रैपिड सर्वे में जिला प्रशासन की देखरेख में नगर निकायों द्वारा वार्डवार ओबीसी वर्ग की गिनती कराई जाती है। इसके आधार पर ही ओबीसी की सीटों का निर्धारण करते हुए इनके लिए आरक्षण का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जाता है।
जानें, क्या है ट्रिपल टेस्ट
नगर निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण निर्धारित करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाएगा, जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति का आकलन करेगा। इसके बाद पिछड़ों के लिए सीटों के आरक्षण को प्रस्तावित करेगा। दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाएगा और तीसरे चरण में शासन के स्तर पर सत्यापन कराया जाएगा।