भ्रष्टाचार में सरकारी कर्मी को दोषी ठहराने के लिए प्रत्यक्ष सुबूत अनिवार्य नहीं, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी को भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दोषी ठहराने के लिए प्रत्यक्ष सुबूत होना अनिवार्य नहीं है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, शिकायतकर्ता की मृत्यु या अन्य किसी भी वजह से यदि रिश्वत की मांग और उसे लिए जाने के प्रत्यक्ष सबूत उपलब्ध न हों तो उसे परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर भी दोषी ठहराया जा सकता है। संविधान पीठ के समक्ष सवाल यह था कि 'क्या रिश्वत मांगने या देने के संबंध में प्रत्यक्ष साक्ष्य के अभाव में, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत परिस्थितिजन्य अनुमानों के आधार पर दोषसिद्धि हो सकती है।"
पीठ ने कहा, भ्रष्टाचार के मामलों में, जिनमें लोकसेवक आरोपी हो, तो शिकायतकर्ताओं और अभियोजन पक्ष को ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए कि भ्रष्ट लोक सेवक दंडित हों ताकि प्रशासन से भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सके। जस्टिस अब्दुल नजीर जस्टिस वीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रह्मण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, शासन को प्रभावित करने में भ्रष्टाचार की बड़ी भूमिका है और इस कारण ईमानदार अधिकारियों का मनोबल कम होता है फैसला सुनाते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा, किसी अधिकारी को प्रत्यक्ष सबूतों या फिर मौखिक या दस्तावेजी प्रकृति के सबूतों के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है।
धीमा हो जाता है राष्ट्र निर्माण
भ्रष्टाचार में लिप्त लोकसेवक एक बड़ी समस्या बन गया है। यह हर जगह फैल गया है। सार्वजनिक गतिविधि का कोई भी पहलू इस बदबू से अप्रभावित नहीं रह गया है। इसका पूरे देश के कामकाज पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ता है। बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार राष्ट्र निर्माण की गतिविधियों को धीमा कर देता है। सभी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। _ सुप्रीम कोर्ट
प्रत्यक्ष सुबूत की कमी स्वतः बरी होने का आधार नहीं : केंद्र
इस मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ को कहा था कि उसके सामने अपने 2015 के एक फैसले में यह स्पष्ट करने का शानदार अवसर है कि भ्रष्टाचार के मामले में प्रत्यक्ष या प्राथमिक सुबूत की कमी भ्रष्टाचारी के स्वतः बरी हो जाने का आधार नहीं है।
पीठ ने कहा, शिकायतकर्ता के साक्ष्य और रिश्वत की मांग के प्रत्यक्ष या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में, धारा 7 और धारा 13 (1) (डी) के तहत लोक सेवक के अपराध का निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
भ्रष्टाचार से जनता का भरोसा खत्म होता है।
एबी भास्कर राव बनाम सीबीआई के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस बीवी नगरत्ना ने कहा कि इन फैसलों में न्यायालय ने संकेत दिया है कि लोक सेवकों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण संस्थानों के प्रति जनता के विश्वास को खत्म करता है। इससे संस्थान का कामकाज प्रभावित होता है।
■ तीन जजों की पीठ ने 2015 के फैसले में असंगति बताई थी
फरवरी 2019 में तीन जजों की पीठ ने इस मामले को संविधान पीठ के सुपुर्द करने के लिए चीफ जस्टिस को भेजा था। पीठ ने कहा था कि 2015 के शीर्ष कोर्ट के फैसले में इस बारे में विसंगति है। उस फैसले में कहा गया था कि यदि लोकसेवक के खिलाफ प्राथमिक सबूत की कमी है तो उसे बरी होना चाहिए।