कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, भेदभाव हुआ तो गोद लेने का कोई उद्देश्य नहीं
बंगलूरू। कर्नाटक हाईकोर्ट ने अनुकंपा पर नियुक्ति मामले में अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि इस मामले में दत्तक व जैविक संतान में कोई फर्क नहीं है। गोद लिए बच्चे का भी जैविक बच्चे के समान अधिकार है। उनके अभिभावकों के मामले में अनुकंपा पर नियुक्ति को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने कहा कि यदि इस तरह भेदभाव किया गया तो फिर गोद लेने का कोई उद्देश्य नहीं रह जाएगा। इस बारे में हाईकोर्ट ने कर्नाटक सरकार के अभियोजन विभाग की दलीलें खारिज कर दी।
जस्टिस सूरज गोविंदराज और जस्टिस जी बसवराज की खंडपीठ ने यह आदेश दिया। हाईकोर्ट ने कहा, प्रतिवादी अभियोजन विभाग और सहायक लोक अभियोजक की ओर से दत्तक पुत्र और जैविक पुत्र के बीच किए गए अंतर का इस केस में कोई असर नहीं होगा। हाईकोर्ट ने अपने हालिया फैसले में कहा कि एक बेटा, बेटा है और बेटी बेटी है, भले वह दत्तक हो या जैविक । यदि इनमें भेदभाव किया गया तो गोद लेने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
एकल पीठ ने खारिज किया था आवेदन
कर्नाटक के विनायक एम मुत्तत्ती चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। उन्होंने 2011 में एक लड़के को गोद लिया था। उनकी मार्च 2018 में मौत हो गई। उसी वर्ष उनके दत्तक पुत्र गिरीश ने एक आवेदन दायर कर अनुकंपा के आधार पर नौकरी मांगी। विभाग ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि दत्तक पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति देने का नियम नहीं है। बाद में कर्नाटक हाईकोर्ट की एकल पीठ ने गिरीश की याचिका खारिज कर दी थी, क्योंकि नियमों में दत्तक पुत्र के आवेदन पर विचार करने का प्रावधान नहीं है।