नई दिल्ली। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) किसी मौजूदा या पूर्व कर्मचारी को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिए बगैर विभागीय कार्यवाही नहीं कर सकती है। न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा है कि इसके लिए संबंधित कर्मचारी को नोटिस देना अनिवार्य है।
न्यायाधिकरण ने सेवानिवृत्ति के 13 साल बाद बिना नोटिस दिए के दिल्ली नगर निगम के 2018 के आदेश को रद्द करते हुए यह फैसला और पक्ष रखने का मौका दिए बगैर पूर्व कर्मचारी की पेंशन रोके जाने रद्द कर दिया है। न्यायाधिकरण के सदस्य आशीष कालिया ने हाल ही में पारित अपने फैसले में कहा कि तय कानून और पूर्व के फैसले के मद्देनजर किसी का पक्ष सुने बगैर उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए।
विभागीय कार्यवाही करने के लिए संबंधित कर्मचारी का पक्ष सुना जाना चाहिए। सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने के लिए राष्ट्रपति सक्षम प्राधिकार की मंजूरी लेना अनिवार्य है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायाधिकरण ने 13 अप्रैल, 2018 के एसडीएमसी के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत सेवानिवृत्त कर्मचारी की पेंशन को रोक दिया गया था।
न्यायाधिकरण ने यह आदेश सेवानिवृत्त कर्मचारी रमेश चंद्र तंवर की ओर से अधिवक्ता अभिनव रामकृष्णा द्वारा दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए दिया है। अधिवक्ता रामकृष्णन ने न्यायाधिकरण को बताया कि नगर निगम ने तय कानूनों की अनदेखी की थी। रमेश चंद्र तंवर नगर निगम में सफाई अधीक्षक पद से 2005 में सेवानिवृत्त हुए थे। 2018 तक उन्हें पेंशन मिलती रही।
भ्रष्टाचार के आरोपी को निलंबित कर दिया था
याचिका के अनुसार रमेश चंद्र तंवर और अन्य को 2002 में भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपी बनाया और उन्हें निलंबित कर दिया गया था। हालांकि 2005 में उन्हें सेवानिवृत्त करने की अनुमति दे दी और उनकी पेंशन भी जारी हो गई थी। अधिवक्ता रामकृष्णन ने बताया कि 2002 में दर्ज मामले में उनके मुवक्किल और अन्य को निचली अदालत ने 2013 में दोषी ठहराया था। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील अभी लंबित है। 2002 से नगर निगम ने विभागीय कार्यवाही नहीं की और 2018 में बिना पक्ष सुने पेंशन रोक दी थी। याचिका में पेंशन रोकने के इसी आदेश को चुनौती दी गई थी।