अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहे दत्तक पुत्र को राहत देने से हाईकोर्ट का इनकार
प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 23 वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहे एक दत्तक पुत्र को राहत देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि याची ने जिस वर्ष नियुक्ति की मांग की थी उस समय मृतक आश्रित सेवा नियमावली में दत्तक पुत्र परिवार में शामिल नहीं था। दत्तक पुत्र को वर्ष 2011 में शामिल किया गया। ऐसे में 27 साल बाद यह नहीं कह सकते कि परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि नियमावली के तहत एक सीमित समय सीमा में ही आवेदन किया जा सकता है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जौनपुर के संजय कुमार सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची को वर्ष 1990 में राज्य कर्मचारी राम अचल सिंह ने पुत्र के रूप में गोद लिया था। पिता की 1995 में मृत्यु के बाद याची ने चार वर्ष बाद विभाग के समक्ष आश्रित कोटे में नियुक्ति की अर्जी दी थी। 2003 में विभाग ने याची दावा इस आधार पर खारिज कर दिया कि दत्तक पुत्र को मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी देने का नियम नहीं है।
इस आदेश को इस याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी। सुनवाई के बाद कोर्ट ने बाद भारत सरकार बनाम पी वेंकटेश एवं सेंट्रल कोलफील्ड बनाम पार्डन ऑरोन केस में सुप्रीम कोर्ट के विधि सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य विपदाग्रस्त परिवार को तत्काल आर्थिक राहत प्रदान कर संकट से उबारना होता है। अनुकंपा का अर्थ यह नहीं कि भविष्य में इसकी मांग कभी भी कर ली जाए।