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Friday, December 17, 2021

अनुकंपा के आधार पर नौकरी स्वत: नहीं , सख्त जांच जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

अनुकंपा के आधार पर नौकरी स्वत: नहीं , सख्त जांच जरूरी : सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर किसी आश्रित की नियुक्ति स्वत: नहीं हो सकती, बल्कि यह परिवार की वित्तीय स्थिति, मृतक पर आर्थिक निर्भरता और परिवार के अन्य सदस्यों के व्यवसाय सहित विभिन्न मानकों की कड़ी जांच पर आधारित होती है। 


जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी. रमासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि यदि अनुकंपा नियुक्ति सेवा की शर्तों में से एक है और किसी भी प्रकार की जांच के बिना किसी कर्मचारी की मृत्यु पर स्वत: हो जाती है, तो इसे कानून में निहित अधिकार के रूप में माना जाएगा। पीठ ने कहा कि लेकिन ऐसा नहीं है।


अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति स्वत: नहीं होती है। यह परिवार की वित्तीय स्थिति, मृतक कर्मचारी पर परिवार की आर्थिक निर्भरता और परिवार के अन्य सदस्यों के रोजगार सहित विभिन्न मापदंडों की सख्त जांच के अधीन होती है। इसलिए, कोई भी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के निहित अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।शीर्ष अदालत ने कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ राज्य के शिक्षा विभाग की अपील पर यह टिप्पणी की।


न्यायाधिकरण के निर्णय की पुष्टि हाई कोर्ट ने भी की थी जिसमें अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए भीमेश नाम के एक व्यक्ति के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया गया था। भीमेश की बहन सरकारी स्कूल में सहायक शिक्षक के रूप में कार्यरत थी, जिसकी मृत्यु आठ दिसंबर, 2010 को हो गई थी। उसके परिवार में मां, दो भाई और दो बहन हैं। भीमेश ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी का आवेदन किया। लेकिन संबंधित विभाग ने अविवाहित महिला कर्मी के किसी आश्रित को नौकरी का प्रविधान न होने की बात कहकर आवेदन ठुकरा दिया। 


हालांकि सन 2012 में ऐसे मामलों में नियमों में संशोधन कर अनुकंपा नियुक्ति देने के नियम का प्रविधान बन गया। इसी के आधार पर भीमेश ने राज्य के प्रशासनिक न्यायाधिकरण की शरण ली। न्यायाधिकरण ने उसके पक्ष में फैसला दिया। इस पर राज्य सरकार ने हाई कोर्ट की शरण ली। वहां से भी भीमेश के पक्ष में फैसला आया। मगर शीर्ष अदालत की पीठ ने हाई कोर्ट का आदेश खारिज करते हुए कहा कि संशोधन के बाद नियुक्ति के आवेदन पर विचार किया गया। ऐसी स्थिति में प्रतिवादी संशोधन का लाभ नहीं मांग सकता।

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