न्यायिक सेवा गठन पर 99% राज्य और हाईकोर्ट पक्ष में नहीं
5000 से ज्यादा पद खाली हैं निचली न्याय पालिका में न्यायिक अधिकारियों के, तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं निचली अदालतों में
नई दिल्ली : निचली अदालतों में जजों की नियुक्तियों के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन होना मुश्किल नजर आ रहा है। क्योंकि, करीब 99 फीसदी राज्य और हाईकोर्ट इसके पक्ष में नहीं हैं। सिर्फ दो हाईकोर्ट और दो राज्यों ने ही इस सेवा के गठन के लिए अपनी स्वीकृति दी है।
पिछले नौ सालों से प्रस्तावित इस न्यायिक सेवा के अस्तित्व में आने की कोई संभावना नहीं लगती। हालांकि, सरकार का कहना है कि राज्य सरकारों और हाईकोर्ट के मत भिन्नता को देखते हुए सेवा के गठन के लिए सामान्य आधार ढूंढने की कोशिश की जा रही है। निचली न्याय पालिका में न्यायिक अधिकारियों के 5000 से ज्यादा पद खाली हैं। इन अदालतों में ही सबसे ज्यादा लगभग तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं। वहीं, देश की सभी अदालतों को मिलाकर कुल लंबित मुकदमों की संख्या अब लगभग चार करोड़ हो गई है।
देशभर में निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति करने के लिए न्यायिक सेवा के गठन का प्रस्ताव 2012 में सचिवों की समिति के समक्ष लाया गया था। इसके बाद अप्रैल 2013 में मुख्यमंत्री और मुख्य न्यायाधीश कॉन्फ्रेंस में भी इस मुद्दे को उठाया गया। यह तय किया गया कि इस मुद्दे पर आगे विमर्श करने की जरूरत है। 2015 में मुख्य न्यायाधीशों की कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे पर विचार किया गया, लेकिन इसमें कोई प्रगति नहीं हुई। संसद की दो समितियों ने भी 2017 और फरवरी 2021 में न्यायिक सेवा के गठन पर परामर्श किया।
अभी इस तरह से होती है नियुक्ति
फिलहाल निचली अदालतों में जजों की भर्ती राज्य सरकारें और हाईकोर्ट के परामर्श से होती हैं। यह जटिल प्रक्रिया है। एक भर्ती होने में एक से डेढ़ वर्ष का समय लग जाता है।
कई राज्यों में भाषा का मुद्दा अहम
कई हाईकोर्ट औैर राज्यों ने इस सेवा के गठन में भाषा का मुद्दा सबसे ऊपर रखा है। उनका कहना है कि तमिलनाडु में उत्तर प्रदेश के जज की नियुक्ति नहीं की जा सकती। न ही तमिल जज को यूपी में लाया जा सकता है।
यूपी और झारखंड ने जवाब ही नहीं दिया
उत्तराखंड और इलाहाबद हाईकोर्ट ने योग्यता में कुछ संशोधन मांगे हैं। वहीं, यूपी और झारखंड ने अपना जवाब ही नहीं दिया है। हरियाणा और मिजोरम इस सेवा के पक्ष में हैं, लेकिन इनके हाईकोर्ट खिलाफ हैं।