राज्यपाल की अनुमति के बिना नहीं हो सकती सेवानिवृत्त कर्मचारी की जांच, पेंशन अधिकार है खैरात नहीं - हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सेवानिवृत्त कर्मचारी की जांच राज्यपाल की अनुमति के बगैर नहीं हो सकती।
कोर्ट ने कहा है कि रेग्यूलेशन 351(ए) के अंतर्गत विभागीय नुकसान की वसूली के लिए सेवा निवृत्त होने से पहले आरोप पत्र दे देना जरूरी है। इसके बाद शुरू की गई कार्यवाही मनमानी मानी जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी अधिकारी को अनुच्छेद 309 के तहत ही अधिकार दिये जा सकते हैं।निगम के प्रस्ताव व सर्कुलर से राज्यपाल के अधिकार प्रबंध निदेशक राज्य विद्युत निगम को नहीं दिये जा सकते।
इसी के साथ कोर्ट ने बिजली विभाग में कनिष्ठ अभियंता पद से सेवानिवृत्त याची को पेंशन आदि पाने का हकदार माना और बिजली विभाग को 9फीसदी व्याज सहित सेवानिवृत्ति परिलाभो का दो माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है साथ ही कहा है कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया तो 6फीसदी अतिरिक्त व्याज कुल 15फीसदी व्याज का भुगतान करना होगा। कोर्ट ने पेंशन का भुगतान न कर तीन साल परेशान करने पर दो माह में याची को 25 हजार रूपए हर्जाना भी देने का निर्देश दिया है।
बिजली विभाग का कहना था कि मृतका आश्रित कोटे में परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी मिल सकती है।याची व इसके भाई दोनो ने नियुक्ति पा ली है। विभाग को आर्थिक नुक्सान की वसूली का अधिकार है।प्रबंध निदेशक के अनुमोदन पर विभागीय कार्यवाही शुरू की गई है।निगम के प्रस्ताव पर जारी सर्कुलर से प्रबंध निदेशक को अनुमोदन का अधिकार प्राप्त है।जिसे कोर्ट ने विधि सम्मत नहीं माना।और कहा कि राज्यपाल के अनुमोदन का अधिकार प्रबंध निदेशक को सौंपने की कानूनी घोषणा नहीं की गई है।
कोर्ट ने कहा कि सेवा निवृत्त होने के समय याची निलंबित नहीं था। उसके खिलाफ कोई विभागीय जांच कार्यवाही शुरू नहीं की गई थी। ऐसे में पेंशन आदि न देना अधिकार का अतिलंघन है। कोर्ट ने कहा पेंशन खैरात नहीं है,यह कर्मचारी की सेवा का अधिकार है। जिसे बिना कानूनी प्रक्रिया के रोका नहीं जा सकता।