इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश, आयु निर्धारण के लिए हाईस्कूल प्रमाणपत्र ही मान्य
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि आयु निर्धारण के लिए हाईस्कूल प्रमाणपत्र ही मान्य है, बशर्ते वह फर्जी न हो। कोर्ट ने कहा कि हाईस्कूल प्रमाणपत्र पर अविश्वास कर मेडिकल जांच रिपोर्ट पर आयु निर्धारण करना ग़लत व मनमानापूर्ण है।
इसी के साथ कोर्ट ने हाईस्कूल प्रमाणपत्र की अनदेखी कर आपराधिक घटना के समय याची को बालिग ठहराने के किशोर न्याय बोर्ड कानपुर नगर व अधीनस्थ अदालत के आदेशों को रद्द कर दिया है। साथ ही प्रमाणपत्र के आधार पर याची को घटना के समय नाबालिग घोषित किया है। कोर्ट ने कहा कि बोर्ड ने 2007 की किशोर न्याय नियमावली की प्रक्रिया का पालन नहीं किया और मनमानी की है।
यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने मेहराज शर्मा की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची व सह अभियुक्तों के खिलाफ हत्या व अपहरण के आरोप में चार्जशीट दाखिल है। याची ने कोर्ट में अर्जी दी कि उसे नाबालिग घोषित किया जाए क्योंकि घटना 23 दिसंबर 2013 की है और तब वह नाबालिग था। कोर्ट ने कहा एसीजेएम को आयु निर्धारण करने का अधिकार नहीं है।
यह अधिकार किशोर न्याय बोर्ड को है। किशोर न्याय बोर्ड ने हाईस्कूल प्रमाणपत्र को अविश्वसनीय माना और मेडिकल जांच रिपोर्ट के आधार पर याची की जन्मतिथि 21 अप्रैल 1996 की बजाय 21 अप्रैल 1997 माना लेकिन हाईस्कूल प्रमाणपत्र को किसी प्राधिकारी ने फर्जी नहीं करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि नियमावली 2007 में आयु निर्धारण की प्रक्रिया दी गई है। जन्म प्रमाणपत्र नहीं है, तभी मेडिकल जांच रिपोर्ट के आधार पर आयु निर्धारण किया जाएगा। हाईस्कूल प्रमाणपत्र या स्कूल प्रमाणपत्र या स्थानीय निकाय का जन्म प्रमाणपत्र न होने पर ही मेडिकल जांच रिपोर्ट मान्य है। और प्रथम साक्ष्य हाईस्कूल प्रमाणपत्र ही है।