राज्य कर्मचारियों को चार साल बाद भी नहीं मिल सकी कैशलेस इलाज की सुविधा
● 2016 में ही हुई थी घोषणा, 2017 से मिलने वाला था राज्य कर्मचारियों को इसका लाभ
● अब बनाया जा रहा दबाव, 15 को सौंपा जाएगा प्रत्यावेदन, आंदोलन के लिए एस्मा हटने का इंतजार
राज्य कर्मचारियों को कैशलेस इलाज की सुविधा इसकी घोषणा के चार साल बाद भी नहीं मिल सकी है। कोविड संक्रमण के बीच इस मांग ने फिर से तेजी पकड़ी है। कर्मचारी यूनियनों के प्रदेश नेतृत्व की ओर से मांग पत्र सौंपा जा चुका है। इसी क्रम में 15 जुलाई को शासन को फिर प्रत्यावेदन सौंपा जाएगा। इस बाबत कर्मचारियों का समर्थन जुटाने के लिए ऑनलाइन बैठकें शुरू हो गई हैं। सड़क पर आंदोलन के लिए एस्मा हटने का इंतजार है।
2016 में सपा सरकार में ही कैशलेस चिकित्सा सुविधा की घोषणा की गई थी। हेल्थ कार्ड बनाने की शुरुआत भी हो गई थी। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद भी इसके लिए प्रक्रिया शुरू की गई। योजना को पं. दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर कर दिया गया। उम्मीद थी कि 2017 से कर्मचारियों-पेंशनरों को इस योजना का लाभ मिलने लगेगा। लेकिन उसके बाद फाइल आगे नहीं बढ़ पाई। इसे लेकर कर्मचारियों और पेंशनर्स की ओर से लगातार आंदोलन जारी रहा। अब कर्मचारियों की ओर से एक बार फिर शासन को ज्ञापन सौंपा गया है।
उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ के कार्यवाहक जिलाध्यक्ष राजेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि कर्मचारियों को इलाज का खर्च मिलता है लेकिन लंबी और जटिल प्रक्रिया के बाद। इससे कर्मचारियों को कई तरह की परेशानी उठानी पड़ती है। पैसे का इंतजाम नहीं होने की वजह से कर्मचारी समुचित इलाज नहीं करा पाते। इसके अलावा फर्जीवाड़े की भी शिकायतें रहती हैं। वहीं, मंडल अध्यक्ष अश्वनी कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि प्रदेश नेतृत्व की ओर से ज्ञापन सौंपे जाने के अलावा अफसरों संग वार्ता भी की गई है। शासन की ओर से सकारात्मक संकेत मिले हैं। यदि जल्द ही इस पर निर्णय नहीं हुआ तो 15 जुलाई को फिर प्रत्यावेदन सौंपा जाएगा। अश्वनी का कहना है कि जिला स्तर पर भी डीएम के माध्यम से ज्ञापन सौंपा जाएगा।
अग्रिम भुगतान को लेकर बना है गतिरोध
गवर्नमेंट पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष पूर्व मंडलायुक्त आरएस वर्मा का कहना है कि 2017 से ही कैशलेस इलाज की सुविधा मिलनी थी लेकिन सरकारी अस्पतालों में अग्रिम भुगतान को लेकर विवाद शुरू हो गया। इस योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में एक निश्चित राशि पहले से रखनी होगी। इसे लेकर ही गतिरोध बना हुआ है। शासन की ओर से इसे लेकर कमेटी भी गठित है लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। आरएस वर्मा का कहना है कि कोरोना कर्फ्यू से पहले मांग पत्र सरकार को सौंपा गया था। सांसद केशरी देवी पटेल के माध्यम से भी मांग पत्र भेजा गया। जल्द ही पेंशनर्स का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिलेगा।