यूपी : कर्मचारियों के वेतन-भर्तों पर खर्च में और कमी की गुंजाइश नहीं, समिति ने ऐसे किया सरकारी कर्मचारियों के वेतन का बचाव
लखनऊ। प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते पर इतना भी खर्च नहीं किया जा रहा है कि उसमें कमी की जा सके। वहीं, सिर्फ आरोप के आधार पर कार्मिकों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई उचित नहीं है। इससे उनका मनोबल गिरता है। यह निष्कर्ष सरकारी विभागों में कार्मिकों की संख्या का युक्तिकरण, प्रभावशीलता व दक्षता में सुधार के लिए गठितपूर्व मुख्य सचिव राजीव कुमार समिति का है। समिति ने कार्मिकों के मनोबल को बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण संस्तुतियां की हैं।
शासन स्तर पर कई प्रभावशाली अफ सरों का एक वर्ग है, जो समूह 'ग' व 'घ' स्तर के कार्मिकों का वेतन प्राइवेट सेक्टर के इसी वर्ग के कर्मियों से अधिक होने का हवाला देकर कटौती की वकालत करता रहता है। ऐसी मानसिकता वाले अफसरों के प्रयास से कर्मचारियों के कई भत्ते समाप्त कर दिए गए। समिति ने इस विषय पर विचार किया कि क्या कर्मचारियों के वेतन व भत्तों पर प्रति व्यक्ति खर्च में कमी की जा सकती है।
इसके लिए समिति ने गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, असम, ओडिशा और यूपी के कर्मचारियों के वेतन व भत्तों पर किए जा रहे खर्च का तुलनात्मक अध्ययन किया। इसके बाद समिति ने कहा, यूपी में कर्मचारियों के वेतन व भत्तों पर प्रति व्यक्ति हो रहा खर्च बिहार को छोड़कर अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है। ऐसे में यहां के कर्मचारियों के वेतन-भ्तों में प्रति व्यक्ति कम किए जाने की गुंजाइश नहीं है।
ऐसे किया गया सरकारी कर्मचारियों के वेतन का बचाव : समिति के मुताबिक सातवें केंद्रीय वेतन आयोग ने आईआईएम अहमदाबाद के माध्यम से केंद्र सरकार और निजी क्षेत्र में समान स्तर के कार्मिकों को मिल रहे लाभों का तुलनात्मक अध्ययन कराया था। इसमें पता चला कि समूह 'ग' व 'घ' के कार्मिक को निजी क्षेत्र की तुलना में मासिक वेतन अधिक मिल रहा था। मसलन केंद्र सरकार के समूह 'घ' के हेल्पर स्तर के कार्मिक को न्यूनतम स्तर का मासिक वेतन 22,579 रुपये मिल रहा था, तो निजी क्षेत्र में यह 8.000 से 9,500 रुपये के बीच था।
जबकि उच्चतम स्तर के पदों के लिए स्थिति विपरीत थी। केंद्र सरकार के सचिव स्तर के पदों पर मिल रहे वेतन की तुलना में निजी क्षेत्र में काफ अधिक वेतन था। इस निष्कर्ष के बावजूद सातवें वेतन आयोग ने न्यूनतम वेतन का निर्धारण निजी क्षेत्र की तुलना के आधार पर नहीं किया। पर, एक परिवार के लिए न्यूनतम आवश्यक खाद्य पदार्थ, बिजली, पानी, मनोरंजन, शादी-विवाह, त्योहार व मकान आदि पर होने वाले खर्च को गणना में लेते हुए न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये तय किया इसी अनुपात में समूह 'ग' व 'घ' के पदों के लिए न्यूनतम वेतन का निर्धारण किया गया इस न्यूनतम वेतन के साथ-साथ समयावधि के आधार पर उच्च वेतनमान दिए जाने की व्यवस्था की गई।
आपराधिक कार्रवाई जरूरी हो तो सबसे पहले कराएं विभागीय जांच
समिति ने माना कि कई बार विभिन्न मामलों में अनियमितताएं पाए जाने पर विभागीय स्तर से होने बाले कार्रवाई से पहले ही कार्मिकों के खिलाफ अभियोजन के संबंध में एफआईआर दर्ज करा दी जाती है। इससे अनुशासनात्मक व विभागीय कार्रवाई शुरू मुश्किल हो जाता है। दोषमुक्त हो जाने की दशा में शासकीय हित प्रभावित होने के साथ ही कार्मिक के मनोबल व निर्णय लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। समिति ने सिफारिश की है कि एक ऐसी मजबूत व्यवस्था बनाई जाए. जिससे दोष सिद्ध होने से पूर्व कार्मिक के खिलाफ आपराधिक व अभियोजन संबंधी कार्रवाई शुरू न की जाए। इससे कार्मिकों का मनोबल टूटने से बचेगा और शासकीय हित में प्रोत्साहन व संरक्षण देने के लिए अनुकूल वातावरण मिल सकेगा। वहीं यह भी कहा है, अगर कार्मिक के खिलाफ आपराधिक अभियोजन संबंधी कार्रवाई जरूरी हो तो इससे पहले विभाग में एक स्वतंत्र समिति गठित कर सभी पहलुओं का जांच कराई जाए। फिर इसकी रिपोर्ट के आधार पर आगे कार्रवाई की जाए।
हर कर्मचारी का जॉब चार्ट हो, वार्षिक मूल्यांकन की बनाएं कसौटी
समिति ने हर कर्मचारी का उसके कार्य से जुड़ा जॉब चार्ट नए सिरे से तैयार करने का सुझाव दिया है। कहा है, अधिकांश विभागों में निर्धारित जॉब चार्ट या तो है नहीं या बहुत पुराना है। लिहाजा समय के साथ विभागीय कार्यों में हुए बदलाव को शामिल कर सभी विभागों के प्रत्येक स्तर के पदों के लिए जॉब चार्ट बनाया जाए जॉब चार्ट को विभागीय वेबसाइट पर अपलोड किया जाए और प्रत्येक तीन साल में आवश्यकतानुसार इसे संशोधित किया जाए वहीं, प्रत्येक पद के लिए कर्तव्य व दायित्व का निर्धारण कर उसे भी वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाए। इस पहल से विभिन्न विभागों के समकक्ष जॉब चार्ट के पदों पर एकीकृत भर्ती की जा सकेगी। समिति ने कहा कि कार्मिकों के कामों का वार्षिक मूल्यांकन भी इसी जॉब चार्ट से किया जाए।