शेयर बाजार की तेजी से नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) में निवेश पर रिटर्न बढ़ा, देखें विभिन्न पेंशन फंड्स का पिछले 5 वर्षों में रिटर्न
शेयर बाजार के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने का लाभ नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) में निवेश करने वाले निवेशकों को भी मिला है। एनपीएस ने इस साल निवेशकों को दोहरे अंक में रिटर्न दिया है। एनपीएस ने इस साल औसत 13.20 फीसदी की दर से रिटर्न दिया है। इसमें एचडीएफसी पेंशन मैनेजमेंट का टियर-1 खाता ने 14.87 फीसदी की दर से रिटर्न दिया है।
ऐसे में वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि रिटायरमें प्लानिंग के लिए एनपीएस एक बेहतर निवेश विकल्प है। शेयर बाजार से जुड़े होने के कारण निवेशकों को इसमें एफडी और दूसरे निवेश माध्यमों के मुकाबले ज्यादा रिटर्न मिलना तय है। हालांकि, यह भी संभव है कि जब बाजार में गिरावट आए तो रिटर्न कम मिले लेकिन लंबी अवधि में यह बेहतर प्रदर्शन करेगा। सरकार की ओर से मैनेज की जा रही एनपीएस स्कीम के टियर-1 खाता में निवेश बढ़कर 14,421 करोड़ रुपये पहुंच गया है।
एनपीएस के तहत टियर-1 स्कीम का प्रदर्शन
पेंशन फंड (स्कीम-ई) एक साल में रिटर्न तीन साल में रिटर्न पांच साल में रिटर्न सात साल में रिटर्न औसत रिटर्न
एफडी के मुकाबले ज्यादा रिटर्न
वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि एनपीएस एक बेहतर निवेश विकल्प है। इसमें दिया जा रहा एन्युटी विकल्प इसे बेहतर बनाता है। इस स्कीम में निवेश से आपके पैसे को बढ़ने का ज्यादा मौका मिलता है। अगर कोई एनपीएस में 50:50 का विकल्प को चुनता है जिसमें आधा पैसा डेट में और आधा इक्विटी में लगाया जाता है तो निवेशक को डेट से आठ फीसदी का रिटर्न मिलता है। एनपीएस में निवेश करने वाले को औसत 10 फीसदी से ज्यादा रिटर्न मिल सकता है। यह एफडी के मुकाबले काफी बेहतर है क्योंकि एफडी पर ब्याज छह फीसदी से नीचे पहुंच गया है।
मिलते हैं दो तरह विकल्प
एनपीएस में निवेश के दो तरह विकल्प हैं। पहला विकल्प है एक्टिव मोड। इसके तहत निवेशक हर साल अपने रिटर्न का आंकलन करते इक्विटी और डेट के विकल्पों में बदलाव कर सकता है। वहीं ऑटो मोड का विकल्प चुनने पर निवेशक के पैसे को आठ फंड मैनेजर हैंडल करते हैं और बाजार के अनुसार इक्विटी और डेट में बदलाव करते रहते हैं।
प्री-मैच्योर निकासी की सुविधा
एनपीएस के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में प्री-मैच्योर निकासी की जा सकती है। योजना के तहत नया व्यापार शुरू करने, घर खरीदने या बनाने, शादी, बच्चों की पढ़ाई व लिस्टेड बीमारी आदि के लिए ही प्री-मैच्योर निकासी की जा सकती है।