अपर मुख्य सचिवों से लेकर जिलाधिकारियों तक की शिकायतें
लखनऊ। विधानमंडल का मानसून सत्र समाप्त होने के बाद शासन से जिलों तक के कई वरिष्ठ अधिकारियों के तबादले हो सकते हैं। इनमें अपर मुख्य सचिव से लेकर जिलाधिकारी तक शामिल हैं। इनके खिलाफ शिकायतें आम हैं। सत्र के दौरान सत्ताधारी दल के ही कई विधायक ऐसे अफसरों के किस्से सुनाते घूमते नजर आते हैं।
जानकार बताते हैं कि गोरखपुर से भाजपा के विधायक डॉ. आरएमडी अग्रवाल प्रशासनिक अफसरों के खिलाफ नाराजगी जताने वालों में अकेले नहीं हैं। शासन से तक के कई अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भी विधायकों व सांसदों में नाराजगी है। फर्क सिर्फ इतना है कि डॉ. अग्रवाल सोशल मीडिया पर खुलकर आ गए, वहीं अन्य जनप्रतिनिधि उचित फोरम पर अपनी बात रख रहे हैं।
विधायकों का कहना है कि शासन में अपर मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव स्तर के आठ अधिकारी ऐसे हैं, जिनके व्यवहार व कार्यशैली को लेकर नाराजगी ज्यादा है। इनमें ज्यादातर अधिकारी दो-दो, तीन-तीन वर्ष से एक ही जगह पर जमे हैं। ये जनप्रतिनिधियों से मिलने से कन्नी काटते हैं। जब मिलते हैं तो प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते और शिकायतों को खानापूर्ति की तरह लेते हैं। इनमें तीन अधिकारियों की वजह से सरकार की सबसे ज्यादा फजीहत हो रही है। एक अधिकारी लंबे समय से एक विभाग में कुंडली जमाए थे। पिछले दिनों हटाए गए, लेकिन कार्यालय में कोई बदलाव नहीं हुआ। अब उन्हें स्थापित करने के लिए मातहत अफसरों की फौज बढ़ाई जा रही है। विधायकों का दावा है कि सत्र के बाद ऐसे अफसरों काइधर से उधर होना पक्का है। इसी तरह करीब एक दर्जन जिलों के डीएम व कप्तान के खिलाफ शिकायत है कि वे जनप्रतिनिधियों के सही काम के बारे में भी नहीं सुनते। कोरोना संक्रमण के दौरान वे केवल फोटो खिंचाकर ट्वीट करते रहे, फील्ड में निकले तक नहीं। कई अफसर सत्ताधारी दल के जिला अध्यक्ष और विधायकों से ज्यादा विरोधी दलों से जुड़े लोगों की सुन रहे हैं। ऐसे अफसरों की विदाई भी पक्की है। तमाम लोगों ने अपने जिले की शिकायत प्रभारी मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री तक पहुंचाई है। शुक्रवार को भी एक प्रभारी मंत्री अपने प्रभार वाले जिले के भाजपा जिलाध्यक्ष व विधायकों के साथ कुछ अफसरों की शिकायत लेकर मुख्यमंत्री से मिले।