एक नजर में:-
- पांच लाख राज्य कर्मियों, पेंशनर्स ने बनवा लिए हैं हेल्थ कार्ड
- प्रदेश में हैं 14 लाख से अधिक पेंशन और 12 लाख कर्मचारी
- जिले में हैं 65 हजार पेंशन और 15 हजार से अधिक कर्मचारी
- 2016 में हुई थी कैशलेस इलाज की घोषणा, 2017 में होनी थी लागू
- 38 करोड़ रुपये रिवाल्विंग फंड की मांग पर बना हुआ है गतिरोध
- चार वर्ष पहले ही हो चुका है निर्णय, लेकिन अब अलमारी में बंद है फाइल
प्रयागराज। राज्य कर्मियों और पेंशनर्स स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। हेल्थ कार्ड बनवाने के तीन वर्ष बाद भी वे कैशलेस इलाज की सुविधा से वंचित हैं। अभी अस्पतालों की सूची ही जारी नहीं हुई है जहां वे कैशलेस इलाज करा सकें। इससे उनमें नाराजगी है।
केंद्र की तरह राज्य कर्मियों को भी कैशलेस इलाज की सुविधा की मांग को लेकर कर्मचारी एवं पेंशनर लंबे समय से संघर्षरत हैं। उनकी मांग पर 2016 में कैशलेस इलाज की सुविधा दिए जाने की घोषणा की गई। प्रक्रिया भी तेजी से शुरू की गई और मई 2017 से यह सुविधा अपेक्षित थी लेकिन लगातार पत्तियों के बाद अब फाइल ही ठंडे बस्ते में चली गई है। गवर्नमेंट पेंशनर्स वेलफेयर एसो. के अध्यक्ष पूर्व मंडलायुक्त आरएस वर्मा का कहना है कि इस योजना को शुरू करने के लिए मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह, सांसद केशरी देवी पटेल समेत अनेक नेताओं के माध्यम से मांग की जाती रही लेकिन एक कमेटी बनाकर पूरी प्रक्रिया ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। बताया कि पहले सीजीएचएस में शामिल अस्पतालों में ही यह सुविधा दिए जाने का निर्णय लिया गया लेकिन सरकारी विभागों में ही सहमति नहीं बन पाई। इसी संदर्भ में अस्पतालों की ओर से रिवाल्विंग फंड की मांग की गई। 38 करोड़ रुपये रिवाल्विंग फंड पर सहमति बनती भी दिखी लेकिन एक विभाग की आपत्ति के बाद इस पर भी गतिरोध बन गया। उत्तर प्रदेश कर्मचारी महासंघ के जिलाध्यक्ष नरसिंह का कहना है कि शुरू में इस योजना को लेकर बहुत गंभीरता दिखाई गई लेकिन अब पूरी प्रक्रिया ठप है। कर्मचारी इस मांग को लेकर आंदोलन करते रहे हैं और आगे भी निर्णायक लड़ाई की तैयारी है।