2005 से पहले जन्मी बेटी को भी पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर हक : सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने कहा, बेटियों को समानता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि बेटियों को समानता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। संयुक्त हिंदू परिवार में पिता की संपत्ति में बेटी का भी बराबर हक होगा, भले ही उसका जन्म हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 के अमल में आने से पहले क्यों न हुआ हो। इतना ही नहीं, पिता की मौत इससे पहले भी हुई हो तो बेटी को पूर्वजों की संपत्ति में बेटों के समान अधिकार मिलेगा। हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 संशोधन की तिथि से प्रभावी माना जाएगा।
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस नजीर और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने मंगलवार को कहा, बेटा तभी तक बेटा रहता है, जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती, लेकिन बेटी पूरी जिंदगी प्यारी बेटी रहती है। हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 की धारा 6 का प्रावधान संशोधन से पहले या बाद में पैदा हुई बेटी को बेटे की तरह
छह महीने के भीतर निपटाएं लंबित मामले
पीठ ने कहा, इस मुद्दे पर विभिन्न अदालतों में लंबे समय से अपील लंबित हैं। परस्पर विरोधी फैसलों की वजह से उत्पन्न कानूनी विवाद के कारण इस मामले में पहले ही काफी विलंब हो चुका है। हम अनुरोध करते हैं कि सभी लंबित मामलों पर यथासंभव छह महीने के भीतर फैसला कर दिया जाए।
2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 की धारा 6 में संशोधन कर बेटियों को भी बेटों के समान हक दिया गया। संसद ने माना कि ऐसा नहीं होने के चलते बेटियों के साथ भेदभाव हो रहा था।
बेटा तभी तक बेटा रहता है,जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती, पर बेटी पूरी जिंदगी प्यारी बेटी रहती है।-सुप्रीम कोर्ट
नहीं था समान दर्जा : 1956 में बने हिंदू उत्तराधिकार कानून में संयुक्त हिंदू परिवार में महिलाओं को विरासत का अधिकार मिला था। बेटी को समान हक का दर्जा नहीं दिया गया था।
ही समान अधिकार व दायित्व प्रदान करता है। में हिस्सा मांग सकती हैं। चूंकि कोपार्सनरी (समान पीठ ने कहा, नौ सितंबर, 2005 से पहले जन्मीं बेटियां सेक्शन 6 (1) के तहत 20 दिसंबर, 2004 से पहले बेची या बंटवारा की गई संपत्ति
हक) का अधिकार जन्म से ही है, लिहाजा यह जरूरी नहीं कि नौ सितंबर, 2005 को कानून के अमल में आने से पहले पिता जीवित ही होना चाहिए। वहीं, बेटी संशोधित कानून प्रभावी होने से पहले पैदा हुई हो या बाद में, उसका संपत्ति में बेटे के समान हक होगा। कोर्ट ने कहा, संशोधित कानून के बाद से ही बेटियों का अधिकार असीम है
इसलिए अहम फैसला
पांच साल पहले कहा था पिता का जीवित होना जरुरी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2015 में दिए गए फैसले में कहा गया था कि बेटी तभी कोपार्सनर होगी, अगर सितंबर 2005 को संशोधन कानून के अधिसूचित होने के समय पिता और पुत्री, दोनों जीवित हो। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल कि कि क्या 2005 के हिंदू उत्तराधिकार कानून में संशोधन से पहले के मामले में यह मान्य होगा या नहीं? क्या 2005 के संशोधन अधिनियम के पहले के मामले में बेटी को संपत्ति का अधिकार मिलेगा? बेटी अगर 2005 के संशोधन अधिनियम से पहले पैदा हुई तो क्या उसे अधिकार मिलेगा?