प्रोन्नति में आरक्षण की अर्जी खारिज, सरकार ने पिछले साल किया था आग्रह
सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में अस्थाई रूप से आरक्षण देने के केंद्र सरकार के आग्रह को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि मामले को विस्तार से सुने बगैर एससी/ एसटी को प्रमोशन में आरक्षण पर 2019 के आदेश में न तो संशोधनकिया जाएगा, न ही स्पष्टीकरण दिया जाएगा। सुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की पीठ के समक्ष अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि प्रमोशन रुकने से प्रशासन चलाना लगभग असंभव सा हो गया है। 1.3 लाख पोस्ट प्रमोशन के कारण नहीं भर पा रही हैं। इन पोस्ट पर एडहॉक प्रोन्नति की अनुमति दी जाए।
बेंच ने कहा कि अंतिम सुनवाई होने तक कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि इस मामले को एक महीने बादसुनवाई पर लगाया जा सकता है। सरकार को इससे भी झटका लगा है, जिसमें कोर्ट ने अपने 2018 के फैसले परपुनर्विचार करने से फिलहाल इनकार कर दिया है, जिसमें एससी/एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर लागू करने के लिएकहा गया था। वेणुगोपाल ने कहा कि केंद्र सरकार के 23 विभागों में 1.3 लाख प्रोननतियां रुकी हुई हैं, ऐसी स्थित में प्रशासन कैसे चलाया जा सकता है। उन्होंने कहा ये प्रोन््नतियां सामान्य वर्ग के साथ-साथ आरक्षित वर्ग को विशुद्ध रूप से वरिष्ठता के आधार पर दी जाएंगी। इनसे कोई अधिकार उनके पक्ष में सृजित नहीं होगा। उन्होंने कहा कि 15 अप्रैल 2019 के यथास्थिति आदेश में स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता है, जिससे सरकार 2018 के प्रोन्नति में आरक्षण देने की स्वतंत्रता का इस्तेमाल कर सके।
सरकार ने पिछले साल किया था आग्रह
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट के 2017 के आदेश पर रोक लगा दी थी। उस आदेश में हाईकोर्ट ने सरकार से कहा था कि एससी/एसटी के लोगों के संख्यात्मक आंकड़े एकत्र करने के बाद प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है। हाईकोर्ट के इस आदेश से भारी संख्या में लोगों को पदावनत करना पड़ता, जिससे बचने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील में आई। उस पर
शीर्ष कोर्ट ने यथास्थिति का आदेश दे दिया। इस बीच 2018 में संविधान पीठ का फैसला आया। पीठ ने प्रमोशन में आरक्षण देने को सही ठहराया लेकिन साथ में कहा कि इस वर्ग में क्रीमी लेयर कानून लागू होना चाहिए।