एफआईआर में चार्जशीट दाखिल न होने के बाद भी प्रमोशन रोकना गलत : हाईकोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बाद अगर लम्बे समय तक चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है तो कर्मचारी का प्रमोशन रोकना गलत है। कोर्ट ने कहा कि आरोप पत्र दाखिल करने में देरी कर्मचारी की वजह से नहीं है तो उसे तदर्थ प्रमोशन दे देना चाहिए। यह आदेश जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्र ने बरेली में तैनात पुलिस कान्सटेबल मनोज कुमार सिंह की याचिका पर दिया है। याची का कहना था कि कान्सटेबल से हेड कान्सटेबल पद पर उसके प्रमोशन को वर्ष 2018 में इस आधार पर रोक दिया गया था कि उसके खिलाफ एक प्राथमिकी वर्ष 2017 में दर्ज है।
याची के वरिष्ठ वकील विजय गौतम का कहना था कि मुकदमा दर्ज हुए एक वर्ष से अधिक का समय बीत गया है और क्रिमिनल केस में पुलिस ने अभी तक कोई चार्जशीट दाखिल नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारत सरकार बनाम केवी जानकी रमन केस का हवाला देते हुए अधिवक्ता ने कहा कि यदि याची की कोई गल्ती नहीं है और एक वर्ष बीत जाने के बाद भी मुकदमा में चार्जशीट दाखिल नहीं किया जाता है तो कर्मचारी प्रमोशन पाने का हकदार है और उसका प्रमोशन नहीं रोका जा सकता है। प्रदेश सरकार के एक शासनादेश का भी हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि चार्जशीट आने के एक वर्ष बाद तदर्थ प्रमोशन दे देना चाहिए। कहा गया था कि याची का बार-बार अधिकारियों को प्रत्यावेदन देने के बावजूद उसके मामले में कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
कोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए निस्तारित कर दिया कि यह तथ्य का प्रश्न है कि चार्जशीट दाखिल न हो सकने में याची का दोष था अथवा नहीं। और दूसरा कि इसी कारण से उसका प्रमोशन रोका गया कि नहीं। इस कारण कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश निर्देश दिया है कि वह याची के प्रमोशन के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसला तथा तदर्थ प्रमोशन को लेकर सरकार के शासनादेश 28 मई 1997 के प्रकाश में निर्णय ले। कोर्ट ने कहा कि एक वर्ष से अधिक का समय बीत गया है इस कारण अधिकारी इस मामले में आदेश प्राप्ति की तिथि से चार माह के भीतर फैसला लेकर आदेश जारी करे।