स्थानांतरण नौकरी का हिस्सा हाईकोर्ट, अदालतें सामान्यत: नहीं कर सकती हस्तक्षेप
स्थानांतरण नौकरी का हिस्सा, अदालतें सामान्यत: नहीं कर सकती हैं हस्तक्षेप
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि स्थानांतरण नौकरी का हिस्सा है और किसी सेवा में जाने वाले व्यक्ति के लिए अनिवार्य शर्त है। इसलिए जब तक कोई विशेष कारण न हो अदालतें स्थानांतरण आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं।
कोर्ट ने गोरखपुर के एसएसबी अस्पताल में तैनात सेकेंड कमांडेंट (मेडिकल) डा. राकेश कुमार भारतीया के स्थानांतरण पर मानवीय आधार पर रोक लगा दी है। डा.भारतीया की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने दिया है।
याची का कहना था कि वह जून 2016 से गोरखपुर में तैनात हैं। 23 मार्च 2020 को उसका स्थानांतरण छत्तीसगढ़ के लिए कर दिया गया। स्थानांतरण आदेश को चुनौती देते हुए कहा गया कि 18 अक्तूबर 2018 के ऑफिस मेमोरेंडम में कहा गया है कि जो सरकारी कर्मचारी किसी दिव्यांग बच्चे की देखभाल कर रहा है, उसे रूटीन ट्रांसफर की वजह से परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
याची की पत्नी भी एसएसबी में डिप्टी कमांडेंट मेडिकल और वर्तमान में सीतापुर से पीजी कोर्स कर रही हैं। उनका कोर्स मई 2021 में पूरा होगा। याची का एक छह वर्ष का बच्चा है जो मानसिक दिव्यांग हैं। उसकी गोरखपुर में स्पेशल थेरेपी चल रही है। इसलिए याची को मई 21 तक गोरखपुर में ही रखा जाए।
एएसजीआई शशि प्रकाश सिंह ने याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि सरकारी सेवारत कर्मचारी के लिए स्थानांतरण नौकरी की शर्त है। वह इससे मना नहीं कर सकता है। जिस ऑफिस मे मोरेंडम की बात की जा रही है, उसमें विधिक बल नहीं है। विभाग ने याची का पूरा सहयोग किया है और पहले भी दो बार उनका स्थांतारण इसी आधार पर रोका जा चुका है।
सुप्रीमकोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि जब तक कि स्थानांतरण आदेश में किसी प्रकार की अवैधानिकता न हो, अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए कहा कि सामान्यत: स्थानांतरण में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए, मगर मौजूदा मामले में मानवीय आधार पर याची का स्थानांतरण रोकना उचित है। कोर्ट ने याची को मई 2021 तक गोरखपुर में ही तैनात रखने का आदेश दिया है।