मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर भी आरटीआई के दायरे में, जज कानून से ऊपर नहीं हो सकते,पारदर्शिता जरूरी
नई दिल्ली |
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि देश के मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर सार्वजनिक प्राधिकार है। वह सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई), 2005 के दायरे में आता है। कोर्ट ने कहा, संवैधानिक लोकतंत्र में जज कानून से ऊपर नहीं हो सकते। इस फैसले के साथ ही देश के सभी कार्यालय आरटीआई कानून के दायरे में आ गए।
उच्च न्यायालय का फैसला सही: मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट के 2010 के निर्णय को सही ठहराया। शीर्ष न्यायालय के महासचिव और सीपीआईओ की अपीलें खारिज कर दीं। इस तरह अदालत ने अपनी अपीलें ही खारिज कर दीं।
न्यायाधीश की नियुक्ति के कारण नहीं बता सकते : पीठ ने कहा कि कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए की गई सिफारिश में सिर्फ जज के नाम की जानकारी मिल सकती है, पर इसके कारणों की नहीं।
स्वतंत्रता को ध्यान में रखना होगा : पीठ ने आगाह किया कि आरटीआई का इस्तेमाल निगरानी रखने के हथियार के रूप में नहीं हो सकता है। पारदर्शिता मुद्दे पर विचार करते समय न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ध्यान में रखना चाहिए।
जस्टिस रमण ने जस्टिस खन्ना से सहमति जताते हुए कहा, निजता और पारदर्शिता के अधिकार तथा न्यायपालिका की स्वतंत्रता के बीच संतुलन के फार्मूले को उल्लंघन से संरक्षण प्रदान करना चाहिए।
आरटीआई कानून मजबूत हुआ
मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर को आरटीआई के दायरे में लाने का फैसला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने जजों की नियुक्ति की प्रणाली को पारदर्शी बनाने की बात जोर शोर से कही है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने अलग दिए फैसले ने कहा कि कोलेजियम का जन्म न्यायिक व्याख्याओं से हुआ है और ये अपने ही जन्म के समय से ही प्रसव पीड़ा की पीड़ित भी है। इसने जजों के चयन के लिए मानकों तथा उसकी प्रक्रिया और उसके व्यक्तिगत केसों में लागू करने के सूचनाओं के अभाव है। इसके कारण नागरिकों को ये सूचनाएं पाने के लिए संवैधानिक अधिकार सूचना के अधिकार का प्रयोग करना पड़ता है। यदि ये सूचनाएं सार्वजनिक कर दी जाए तो इससे बहुत लाभ होगा। लोग सोचते हैं कि जज ही उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्तियां करते हैं। ऐसे में ये और भी आवश्यक हैं कि कोलेजियम की प्रणाली को सार्वजनिक किया जाए।
निजता की धारा 8(1) जे का प्रभावी इस्तेमाल करें सूचना अधिकारी: उच्चतम न्यायालय ने न्यायालयों को सूचना अधिकार के तहत लाने का आदेश देते सूचना अधिकारियों को चेताया है कि वे सूचना देने से पहले चेक कर लें कि सूचना का निजी हितों से संबंध नहीं है। सूचना कानून का धारा 8(1) जे के तहत इस जांचें। ये भी देखें की सूचना व्यक्तिगत तो नहीं है। यदि ऐसा है तो तीसरी पक्ष को भी नोटिस कर पूछें।