होमगार्ड्स को सिपाहियों के एक दिन के वेतन के बराबर मिलेगा दैनिक भत्ता, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों को दिया आदेश।
उत्तर प्रदेश के होमगार्ड को मिलेगा सिपाही के बराबर रोजाना भत्ता
पुलिस के सिपाही की तरह काम करने वाले, लेकिन वेतन में पीछे रहने वाले उत्तर प्रदेश के करीब 87 हजार होमगार्डस के लिए सुप्रीम कोर्ट से बड़ी खुशखबरी आई है। अब उत्तर प्रदेश के होमगार्ड को पुलिस के सिपाही के न्यूनतम वेतन के बराबर रोजाना भत्ता मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है।
उत्तर प्रदेश में फिलहाल करीब 92हजार होमगार्ड हैं जिसमें से करीब 87 हजार अभी ड्यूटी कर रहे हैं। नियम के मुताबिक होमगार्ड को अभी काम के हिसाब से रोजाना भत्ते के रूप में 500 रुपये मिलते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सिपाही के न्यूनतम वेतन के अनुसार होमगार्ड को रोजाना भत्ता दिया जाएगा। इस हिसाब से एक होमगार्ड का रोजाना भत्ता बढ़कर करीब 672 रुपये हो जाएगा। इसका लाभ ड्यूटी कर रहे होमगार्ड को मिलेगा। होमगार्ड को मिलने वाले वेतन को रोजाना भत्ता कहा जाता है क्योंकि वे जितने दिन काम करते हैं, उसी गुणांक में उन्हें पैसा दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट से पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट की एकलपीठ और खंडपीठ दोनों ने यही आदेश दिया था। प्रदेश सरकार ने खंडपीठ के छह दिसंबर 2016 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी थी।
जज बोले-पुलिस जैसा काम ले रहे हैं तो वेतन भी उसी के मुताबिक दें : न्यायमूर्ति एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रदेश सरकार की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि पुलिस के सिपाही को जो न्यूनतम वेतन प्रतिदिन का मिलता हो उसी हिसाब से होमगार्ड को भी रोजाना भत्ता दिया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान जब प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार, एडिशनल एडवोकेट जनरल ऐश्वर्या भाटी और पैनल वकील अंकुर प्रकाश की ओर से हाई कोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए पुलिस और होमगार्ड की भर्ती और योग्यता में अंतर गिनाए गए तो कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कानून के मुताबिक इनकी भर्ती सिर्फ आपात समय में काम कराने के लिए हुई थी, लेकिन जब इनसे लगातार पुलिस का काम लिया जा रहा है तो उन्हें वैसा ही भत्ता मिलना चाहिए।
खुद सरकार ने खत्म किया है पुलिस और होमगार्ड का अंतर : रंजीत कुमार का कहना था कि होमगार्ड की भर्ती पुलिस की तरह नहीं होती और न ही उनकी पुलिस जैसी ट्रेनिंग होती है। उनकी शैक्षणिक योग्यता भी पुलिस की नहीं होती। राज्य सरकार का यह भी कहना था कि हाई कोर्ट के आदेश से राज्य सरकार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा। दूसरी ओर सरकार की दलीलों का विरोध करते हुए होमगार्ड के वकील जयंत भूषण की दलील थी कि होमगार्ड और पुलिस में जो अंतर था उसे सरकार ने स्वयं खत्म कर दिया है। उनसे लगातार पुलिस जैसा काम करा रही है और इस हिसाब से हाई कोर्ट का आदेश बिल्कुल सही है।