दस फीसद वेतन हजम कर रही नई पेंशन योजना, गायब हुआ पुरानी पेंशन के लिए कटने वाला 18.33 फीसद का अंशदान
■ गायब हुआ पुरानी पेंशन के लिए कटने वाला 18.33 फीसद का अंशदान
■ कर्मचारियों की जेब से ही जा रही सरकार की 10 फीसद की हिस्सेदारी
लखनऊ : नई पेंशन योजना में बाजार के उतार-चढ़ाव का जोखिम तो भविष्य में सामने आएगा, जबकि वर्तमान का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इस पेंशन ने एक झटके में प्रदेश के लाखों कर्मचारियों व शिक्षकों को मिलने वाला कुल वेतन 10.16 फीसद कम कर दिया है। सोमवार को सामने आई नई पेंशन योजना के इस नए तथ्य ने अप्रैल, 2005 के बाद भर्ती हुए कर्मचारियों के साथ हड़ताल की तैयारी कर रहे आंदोलनकारी नेताओं को भी हैरत में डाल दिया है।
नई पेंशन योजना को लेकर कर्मचारियों व शिक्षकों का विरोध यूं ही नहीं है। इस प्रणाली में जहां भविष्य में उन्हें मिलने वाली पेंशन अनिश्चित है, वहीं वर्तमान कुल वेतन भी 10.16 फीसद कम हो गया है। कर्मचारी, शिक्षक व अधिकारी पुरानी पेंशन बहाली मंच के संयोजक हरिकिशोर तिवारी ने बताया कि पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारियों के वेतन में 18.33 फीसद की कटौती कर इसे पेंशन खाते में भेजा जाता था और कर्मचारियों के हाथ में 81.67 फीसद रकम आती थी। इसी में से जीपीएफ व अन्य मदों की कटौती होती थी 1कर्मचारी इसी 81.67 फीसद को अपना पूरा वेतन मानते थे, जबकि 18.33 फीसद की कटौती का लाभ उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन के तौर पर मिलता था। अप्रैल, 2005 में नई पेंशन योजना आई तो एक झटके में 18.33 फीसद की यह रकम गायब हो गई। अप्रैल, 2005 से सेवा में आए लोगों को भी 81.67 फीसद के रूप में उतना वेतन मिला, जितना समान पद पर मार्च, 2005 या उससे भर्ती हुए लोगों को मिलता था लेकिन, इन कर्मचारियों के लिए 18.33 फीसद की पेंशन कटौती बंद हो गई।
नई पेंशन योजना में शामिल कर्मचारियों के साथ पहला छलावा यह हुआ कि 10 फीसद कर्मचारी अंशदान के तौर पर सरकार ने 81.67 फीसद रकम में से ही कटौती शुरू कर दी। इससे नई पेंशन योजना में शामिल कर्मचारियों के हाथ में आने वाला वेतन करीब 8.17 फीसद कम होकर 73.5 फीसद रह गया, जबकि पुरानी पेंशन योजना के कार्मिकों को 81.67 फीसद वेतन मिलता रहा। दूसरा छलावा यह हुआ कि सरकार ने 8.17 फीसद के कर्मचारी अंशदान के साथ अपनी तरफ से भी इतना ही यानि 8.17 फीसद जमा करने का दावा किया, जबकि दोनों अंशदान जोड़कर हुए 16.34 को कर्मचारियों के हाथ में आने वाले 73.5 फीसद वेतन में जोड़ने के बाद भी कुल रकम 89.84 फीसद तक ही पहुंची। यानि सरकार जिसे अपना अंशदान बता रही है, वह वास्तव में कर्मचारियों की जेब से ही जा रहा है, जबकि 10.16 फीसद वेतन सीधे तौर पर कम हो गया।
■ यह भी है नुकसान
★ केस-1 : वर्ष 2005 के बाद नियमित हुए नलकूप विभाग के कर्मचारी शीतला बक्श जब 31 जुलाई 2017 को रिटायर हुए तो उन्हें अंतिम वेतन 36,500 रुपये मिला था लेकिन, पहली पेंशन के तौर पर केवल 508 रुपये हाथ आए।
★ केस-2 : सिंचाई विभाग में इसी तरह 2005 के बाद नियमित हुए गजानंद पांडेय जब 31 अगस्त, 2017 में सेवानिवृत्त हुए तो उन्हें अंतिम वेतन 50,500 रुपये मिला था लेकिन पहली पेंशन केवल 2213 रुपये मिली।
यह दोनों कार्मिक यदि पुरानी पेंशन व्यवस्था में होते तो उन्हें पेंशन के तौर पर अंतिम वेतन की 50 फीसद रकम या गिरी से गिरी हालत में भी न्यूनतम तय नौ हजार रुपये जरूर मिलते, लेकिन नई पेंशन योजना में कोई न्यूनतम रकम तय नहीं है। विडंबना है कि यह रकम उनकी आजीवन फिक्स पेंशन के तौर पर तय हो गई है। अब न पेंशन बढ़ेगी और न ही उन्हें महंगाई भत्ता मिलेगा।