इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित को किसी भी राज्य में नियमानुसार आरक्षण का लाभ पाने का अधिकार, स्वतंत्रता सेनानी को राज्य की सीमा में नही जा सकता बांधा
स्वतंत्रता सेनानी को राज्य की सीमा में नहीं बांधा जा सकता
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि स्वतंत्रता सेनानी को किसी राज्य की सीमा में नहीं बांधा जा सकता है इसलिए उसका आश्रित किसी भी राज्य में नियमानुसार आरक्षण का लाभ पाने का अधिकारी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल एवं न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव की खंडपीठ ने अनमोल दीप की याचिका पर अधिवक्ता क्षितिज शैलेंद्र को सुनकर दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित को संबंधित राज्य का होने पर ही आरक्षण का लाभ देने के कानून को अनुचित ठहराया है। खंडपीठ ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी किसी भी राज्य में रहे, वह स्वतंत्रता सेनानी ही रहेगा। उसे एक राज्य में स्वतंत्रता सेनानी व दूसरे में सामान्य नागरिक नहीं माना जा सकता। कानून भी स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा राज्य के आधार पर तय करने की छूट नहीं देता है। याची को नीट 2018 उत्तीर्ण करने के बाद कानपुर का जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज आवंटित हुआ था। फीस जमा होने के बाद उत्तराखंड का मूल निवासी होने के कारण यूपी में आश्रित का लाभ नहीं देने के आधार पर दाखिले से इनकार कर दिया गया था। अधिवक्ता क्षितिज शैलेंद्र ने ने अपने तर्क में कहा कि दिव्यांग, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों व भूतपूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण अधिनियम 1993 में यूपी का मूल निवासी होने पर ही स्वतंत्रता सेनानी कोटे के तहत दो प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलने का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 व 21 के विपरीत है। यह प्रावधान स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान के भी विपरीत है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने उक्त आदेश के साथ याची को दाखिला देने का निर्देश दिया है।