एनबीटी ब्यूरो, इलाहाबाद : हाई कोर्ट ने 17 साल बाद बालिग होने व स्नातक डिग्री हासिल करने के बाद नियुक्ति की मांग में दी गई अर्जी निरस्त करने के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि आश्रित को नियुक्ति का नियम कर्मचारी की मृत्यु से परिवार पर अचानक आई आर्थिक विपत्ति का सामना करने के लिए बनाया गया है। इसे नौकरी देने का जरिया नहीं बनाया जा सकता। यह नहीं कहा जा सकता कि 17 साल बाद भी परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है।
यह आदेश जस्टिस संगीता चन्द्रा ने सिद्धू मिश्र की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। याची के पिता बिजली विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मी थे। 1996 में उनकी मौत हो गई थी। उस समय याची तीन साल का था। उसकी मां ने विभाग को अर्जी दी कि बालिग होने पर नियुक्ति की मांग करेगी। 2011 में याची बालिग हो गया और स्नातक डिग्री हासिल कर उसने 2013 में नियुक्ति की मांग में अर्जी दी। विभाग ने अर्जी दाखिल करने में हुई देरी के आधार पर खारिज कर दी, जिसे चुनौती दी गयी थी। कोर्ट ने कहा कि बालिग होते ही अर्जी देनी चाहिए थी। शासनादेश परिवार की आर्थिक दशा को देखते हुए अर्जी दाखिल करने में देरी की माफी पर निर्णय की छूट देता है। यह नहीं कहा जा सकता कि 17 साल बाद परिवार की तात्कालिक आर्थिक कठिनाई कायम है। इसे देखते हुए कोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।