■ प्रोन्नति में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने दी दलील, आंकड़े जरूरी नहीं
नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के लोग अपने आप मे पिछड़े हैं। वे दशकों से भेदभाव का शिकार रहे हैं। उन्हें बराबरी पर लाने को आरक्षण दिया जाता है। उनके पिछड़ेपन का अलग से कोई आंकड़ा जुटाने की जरूरत नहीं है। उन्हें सूची में शामिल करने का राष्ट्रपति का आदेश ही पर्याप्त है। सरकार ने कहा कि एम. नागराज फैसले को पुनर्विचार के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाए। जबकि आरक्षण विरोधियों का कहना था कि कानून के मुताबिक प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए पिछड़ा होना पहली शर्त है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से सवाल किया कि अगर आंकड़े नहीं होंगे तो सरकार ये कैसे पता करेगी कि एससी-एसटी वर्ग का नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं। ये दलीलें और सवाल शुक्रवार को एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के बारे में 2006 के एम. नागराज के फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने पर शुरू हुई सुनवाई के दौरान हुए। इस फैसले में कहा गया है कि एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए सरकार को उनके पिछड़ेपन और पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने के आंकड़े जुटाने होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ के इस फैसले के आधार पर आंकड़े न होने के कारण कई राज्यों के कानून कोर्ट से निरस्त हो चुके हैं। कई राज्य सुप्रीम कोर्ट आए हैं। केंद्र सरकार भी दिल्ली हाई कोर्ट के खिलाफ आई है। हाई कोर्ट ने केंद्र की 1997 की अधिसूचना रद कर दी थी।1प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ मामले पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई शुरू हुई तो केंद्र सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि एम. नागराज का फैसला गलत है। उन्होंने कहा कि इंद्रा साहनी के फैसले में कहा गया है कि एससी-एसटी के बारे में पिछड़ेपन का सिद्धांत लागू नहीं होगा।
इसके अलावा एमएम थॉमस के फैसले मे भी संविधान पीठ कह चुकी है कि एससी-एसटी के मामले में राष्ट्रपति का आदेश जारी करना पर्याप्त है। इन फैसलों पर एम. नागराज ने विचार नहीं किया है।
■ 22.5 फीसद मिले कुल आरक्षण : वेणुगोपाल
प्रधान न्यायाधीश ने सरकार से पूछा, आंकड़े नहीं होंगे तो कैसे पता चलेगा कि इस वर्ग का सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है? अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जवाब दिया, राज्य में एससी-एसटी की जनसंख्या के आधार पर यह तय होता है। पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए एससी को 15} व एसटी को 7.5} यानी कुल 22.5} आरक्षण मिलना चाहिए।राज्यों की अपीलें छोटी पीठें निपटाएंगी1कोर्ट ने कहा कि नागराज के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत पर सुनवाई कर रहा है। जरूरत हुई तो मामला सात जजों की पीठ को भेजेंगे। यदि मामला बड़ी पीठ को नहीं भेजा तो राज्यों की अपीलों पर दो या तीन जजों की पीठ मेरिट पर सुनवाई करेगी।
■ एससी-एसटी में लागू हो क्रीमीलेयर : राजीव धवन
आरक्षण विरोधियों की ओर से पेश वकील राजीव धवन ने नागराज फैसले की तरफदारी करते हुए कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने वाले अनुच्छेद में पहली शर्त पिछड़ापन है। इस वर्ग में भी क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू होना चाहिए, क्योंकि आरक्षण का ज्यादातर लाभ सम्पन्न वर्ग ले जाता है। धवन ने कहा कि नागराज का फैसला कहता है कि पिछड़ेपन व अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बाध्यकारी कारण होने पर ही सरकार प्रोन्नति में आरक्षण दे सकती है। सरकार प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। आरक्षण से पहले आंकड़े जुटाए जाएंगे। आरक्षण 50 फीसद की अधिकतम सीमा से ज्यादा नहीं हो सकता। कोर्ट 16 अगस्त को फिर सुनवाई करेगा।नई
■ अभी तक क्यों नहीं जुटाए आंकड़े
कोर्ट ने सरकार से पूछा कि नागराज का फैसला 2006 में आया था, तब से आंकड़ें क्यों नहीं जुटाए। प्रोन्नति में आरक्षण के बारे में कैडर एक यूनिट मानी जाती है। बगैर आंकड़ों के यह कैसे तय होगा। वेणुगोपाल ने कहा कि आंकड़े जुटाने में व्यवहारिक दिक्कतें हैं। नागराज का फैसला लागू करना संभव नहीं है। रोस्टर सिस्टम से प्रोन्नति में आरक्षण तय होता है।